2016: बेहतरीन, असरकारक रही ‘सैराट’, पीछे आई ‘दंगल’

www.khaskhabar.com | Published : गुरुवार, 22 दिसम्बर 2016, 5:14 PM (IST)

वर्ष 2016 समाप्ति की ओर है। इस वर्ष सैल्यूलाइट के परदे पर कई बेहतरीन फिल्मों का प्रदर्शन हुआ। हिन्दी में बनी अनेक फिल्मों ने बॉक्स ऑफिस पर सफलता प्राप्त की। हर वर्ष ऐसा कुछ होता है जो सिनेमा जगत में हटकर होता है। इस बार भी ऐसा ही कुछ हुआ। अंधेरे में चमकते सिनेमाई परदे पर दो ऐसी फिल्मों का प्रदर्शन हुआ, जिन्होंने दिलो-दिमाग को झकझोर कर रख दिया। कहने को तो यह दो भिन्न भाषाओं में बनी फिल्में रहीं, लेकिन दोनों के दृश्य बार-बार आँखों पर समंदर की लहरों के थपेडे जैसे लगते हैं। दिल दिमाग कहीं और उलझा रहता है, अचानक से फिल्म की तस्वीर जेहन में उभर आती है। इस वर्ष जब से इन दो फिल्मों को देखा इससे भाग नहीं पा रहे हैं। ऐसा लगता है कि मस्तिष्क के साथ-साथ हर गली, हर चौराहे पर किसी ने इन दो फिल्मों की तस्वीरें टांग दी है। यह दो फिल्में हैं - मराठी भाषा में बनी ‘सैराट’ और हिन्दी में बनी ‘दंगल’।



[@ 14 साल, 33 फिल्में, दो ब्लॉकबस्टर, 9 असफल]

‘सैराट’ मराठी में बनी है। इसके दृश्य क्रूर समाज में पसर जाने की क्षमता रखते हैं। इस फिल्म को रूढि़वादियों ने भी देखा और सराहा। यही स्थिति ‘दंगल’ की है। इसे देखने के बाद हर कोई इसकी तारीफ कर रहा है। आमिर खान की दंगल पूर्ण से महिला सशक्तिकरण पर आधारित है। ‘बेटी बचाओ बेटी पढाओ’ नारे को सशक्तता प्रदान करने वाली यह फिल्म हर उस इंसान को देखनी चाहिए जो ‘लडकी’ सुनकर मुंह बनाता है या फिर लार टपकाता है। समाज के दोहरे मानदंडों पर करार तमाचा है ‘दंगल’। इन फिल्मों की सफलता ने संकेत दिया है कि समाज में बदलाव की बयार बह निकली है। धीरे-धीरे ही सही समाज में बदलाव आएगा, विशेष रूप से उन समाजों में जिन्होंंने अपने ‘चेहरे’ पर ‘चेहरा’ लगा रखा है।

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‘सैराट’ और ‘दंगल’ दो ऐसी फिल्में हैं जिन्हें पढा और पढाया जाएगा। इन दोनों फिल्मों ने एक ही संदेश दिया है नौजवान लडकी तभी तक घुड़सवारी, बुलेट, ट्रैक्टर चला और पहलवानी के अखाडे में उतर सकती है, जब तक वह अपने पिता के ताकतवर संसार की छत्रछाया में है।

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दंगल में अपनी बेटियों को आगे बढाने का सपना संजोये एक पिता को अपने समाज का, अपने परिवार का, यहां तक अपनी पत्नी का विरोध सहना पडता है, लेकिन वह अपनी बेटियों को लेकर कुछ सपने बुनता और उनको साकार करने के लिए जो संघर्ष करता है वह न सिर्फ समाजों की सोच को बल्कि देश को नारे देने वाले नेताओं पर भी एक सवालिया निशान लगाता है। नारे देना आसान है लेकिन उनको अमल में लेना बेहद कठिन।

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‘सैराट’ मराठी भाषा में बनी ऐसी फिल्म है जिसने व्यावसायिक मोर्चे पर बडी सफलता हासिल की है। इस फिल्म को इतने महीने बीतने के बाद भी अभी तक हिन्दी में डब करके प्रदर्शित नहीं किया गया है। वहीं ‘दंगल’ प्रदर्शित हो रही है। हिन्दी के साथ-साथ यह तमिल और तेलुगु भाषाओं में एक साथ आ रही है। वैसे तो सिनेमा के लिए कोई भाषा नहीं होती वह सिर्फ अपने दृश्यों और विचारों से दर्शक को झकझोरने की क्षमता रखती है।

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‘दंगल’ बडे सितारे की बडी फिल्म है सफलता को मिलेगी ही मिलेगी लेकिन क्या यह सफलता ‘सैराट’ की उस सफलता का मुकाबला कर पाएगी, जो मराठी भाषी दर्शकों के जेहन में अभी तक उस तरह छायी है जैसे कोहरे के मध्य में सूरज की पहली किरण नजर आती है।

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