यह है स्वर्ग का झरना, जहां से कोई नहीं लौटा वापस

www.khaskhabar.com | Published : रविवार, 19 अप्रैल 2015, 12:08 PM (IST)

खजाने को लेकर आपने कई कहानियां सुना होगी। आज आपको एक ऎसे खजाने के बारे बता रहे है जहां अरबों रूपए दफन है, लेकिन कोई निकाल नहीं सकता। जी हां, हरियाणा के रोहतक जिले के पास एक मुगलकाल की बावडी में अरबों का खजाना दफन है। लेकिन आज तक जो भी इस खजाने को लेने के लिए अंदर गया वह वापिस नहीं लौटा। आपको बता दे कि इस चोरों की बावडी की इतिहास में खास जगह बनी हुई है। जिसे स्वर्ग का झरना भी कहते है।
इतिहास में कोई उल्लेख नहीं
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इतिहास में कोई उल्लेख नहीं
कहा जाता है कि यह जगह मुगलकाल की बावडी यादों से ज्यादा रहस्यमयी किस्से-कहानियों के लिए जानी जाती है। सदियों पहले बनी इस बावडी में अरबों रूपयों का खजाना छिपा हुआ है, इतना ही नहीं इसमें सुरंगों का जाल है जो दिल्ली, हिसार और लाहौर तक जाता है। लेकिन इन बातों का इतिहास में कहीं कोई उल्लेख नहीं मिलता। यहां कुछ ऎसे ही सवाल है जो आज भी लोगों के लिए रहस्य बने हुए हैं।
सुरंगों का जाल

सुरंगों का जाल
बताया जा रहा है कि इस बावडी में एक कुआं है जिस तक पहुंचने के लिए 101 सीढियां उतरनी पडती हैं। इसमें कई कमरे भी हैं, जो कि उस जमाने में राहगीरों के लिए बनवाए गए थे। वहीं इस बावडी की जिम्मेदारी सरकार को सौंपी गई थी लेकिन अब यह बावडी जर्जर हो रही है। आपको बतां दे कि इस स्वर्ग के झरने का निर्माण उस समय के मुगल राजा शाहजहां के सूबेदार सैद्यू कलाल ने 1658-59 ई.वी में करवाया था।
ज्ञानी चोर ने दफनाया था

ज्ञानी चोर ने दफनाया था
इस बावडी को लेकर वैसे तो कई कहानियां रहस्यमयी बनी हुई है। लेकिन इनमें रहस्य बनी हुई है ज्ञानी चोर की कहानी। कहा जाता है कि ज्ञानी चोर एक शातिर चोर था जो धनवानों को लूटता था और इस बावडी में छलांग लगाकर गायब हो जाता। लोगों का यह कहना है कि ज्ञानी चोर द्वारा लूटा गया सारा धन इसी बाव़डी में मौजूद है। मान्यताओं के अनुसार ज्ञानी चोर का अरबों का खजाना इसी में दफन है। जो भी इस खजाने की खोज में अंदर गया वो इस बावडी की भूलभुलैया में खो गया और खुद एक रहस्य हो गया।
इतिहासकार नहीं मानते ज्ञानी चोर को

इतिहासकार नहीं मानते ज्ञानी चोर को
लेकिन इस इतिहासकार में ज्ञानी चोर के चरित्र का जिक्र कहीं नहीं मिलता। अत: खजाना तो दूर की बात है। इतिहासकार डॉ. अमर सिंह ने कहा कि पुराने जमाने में पानी की जरूरतों को पूरा करने के लिए बावडियां बनाई जाती थीं। लोगों का कहना है कि इतिहासकारों को चाहिए कि बावडी से जुडी लोकमान्यताओं को ध्यान में रखकर अपनी खोजबीन फिर नए सिरे से शुरू करें ताकि इस बावडी की तमाम सच्चाई जमाने के सामने आ सके। ग्रामीणों का कहना है कि वह कई बार प्रशासन से इसकी मरम्मत करवाने की गुहार लगा चुके हैं।