प्रात:काल बिस्तर से उतरने के पहले यानी पृथ्वी पर पैर रखने से पूर्व पृथ्वीमाता का अभिवादन करना चाहिए, क्योंकि हमारे पूर्वजों ने इसका विधान बनाकर इसे धार्मिक रूप इसलिए दिया, ताकि हम धरतीमाता के प्रति अपनी कृतज्ञता प्रकट कर सकें। वेदों ने पृथ्वी को मां कहकर वंदना की है। चूंकि हमारा शरीर भूमितÂवों से बना है और भूमि पर पैदा अन्न हमने खाया है, जल पिया है, औषधियां पाई हैं।
इसलिए हम इसके ऋणी हैं। उस पर पैर रखने की विवशता के लिए उससे क्षमा मांगते हुए प्रार्थना करनी चाहिए।
समुद्रवसने देवि! पर्वतस्तनमण्डिते।
विष्णुपत्नि नमस्तुभ्यं पादस्पर्श क्षमस्व में।।
अर्थात् समु्रदरूपी वस्त्र धारण करने वाली अर्थात् चराचर प्राणी रूप अपनी संतानों के पोषण हेतु जीवनदायिनी नदियों के समान दुग्ध-धाराओं को जन्म देने वाली, पर्वतरूपी स्तनोंवाली, हे विष्णुपत्नी भूमाता! अपने ऊपर पैर रखने के लिए मुझे क्षमा करें।
इस तरह पृथ्वी का वंदन करना अपनी मातृभूमि का सम्मान करना भी है।