अमरीष मनीष शुक्ला, इलाहाबाद । उत्तर प्रदेश की सियासत इन दिनों अपनों की कलह में सुलग रही है । सूबे में
सत्ताधारी समाजवादी पार्टी की पारिवारिक कलह में चाचा भतीजा मुख्य भूमिका निभा रहे
हैं । तो वहीं क्षेत्रीय राजनीति का समीकरण बदलने वाली अपना दल में मां बेटी के
बीच तलवार खिची है । सोने लाल पटेल द्वारा यूपी में खड़ी की गई अपना दल की राजनीतिक
विरासत का सही उत्तराधिकारी कौन है ? यह सवाल सोने लाल के दुनिया से रूखसत
होने के बाद से ही गहराता चला जा रहा है । अनुप्रिया पटेल और मां कृष्णा पटेल अपना
दल को दो अलग गुट में बांटकर राजनीति कर रही है। सही समय पर अनुप्रिया ने भाजपा का
दामन थाम लिया था और आज वह केन्द्र सरकार में मंत्री हैं और लगातार अपना कद बढ़ाती
ही जा रही हैं ।
ताजातरीन मामले में अपना दल की उत्तराधिकार की जंग ने एक बार फिर
नया मोड़ ले लिया है। चुनाव आयोग ने कृष्णा पटेल को अपना दल का निशान रहा कप प्लेट
का इस्तेमाल पर रोक लगा दी है । चुनाव आयोग ने कृष्णा पटेल यह बहुत बड़ा झटका दिया है। सियासी गलियारे में बस एक ही चर्चा है कि कृष्णा की
हार के लिए अनुप्रिया का पर्दे के पीछे हाथ था ।
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गौरतलब है कि केन्द्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल ने चुनाव आयोग में
अपना दल सोनेलाल के नाम से पार्टी को रजिस्टर्ड कराया है। चुनाव आयोग ने अपना दल का चुनाव
चिन्ह कप प्लेट अनुप्रिया पटेल के पार्टी अपना दल सोनेलाल को ही आवंटित किया है ।
कृष्णा पटेल ने हाल ही में न्यायालय की शरण ली थी लेकिन न्यायालय ने उन्हे चुनाव
आयोग जाने कोर कहा था और अब जब कृष्णा पटेल चुनाव आयोग में कप प्लेट के चुनाव चिन्ह
के आगामी विधानसभा चुनाव में आवंटन की मांग की तो आयोग ने उसे अस्वीकार्य कर दिया
। ऐसे कृष्णा पटेल गुट से चुनाव लड़ने का दावा करने वाले प्रत्याशियों के होश उड़
गये है । आयोग के इस फैसले ने सही माइनों में तख्त पलट का काम कर दिया है । अपना
दल का कृष्णा पटेल गुट वैकल्पिक रास्ते की तलाश कर रहा है कि शायद कही से कोई
उम्मीद की किरण दिख जाये । लेकिन केन्द्रीय मंत्रिमंडल की शक्ति से परिपूर्ण
अनुप्रिया को अब मात दे पाना संभव नजर नहीं आ रहा है ।
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आपको याद होगा कि गत दिनो केन्द्रीय चुनाव ने अपने एक आदेश में
स्पेशल किया था कि अपना दल के चुनाव चिन्ह पर कृष्णा पटेल और उनके प्रत्याशी चुनाव
नहीं लड़ सकते हैं। चुनाव आयोग ने कृष्णा पटेल द्वारा फॉर्म ए और फॉर्म बी जारी
करने पर भी रोक लगा दी है और सभी राज्यों के चुनाव आयोग को निर्देशित किया है कि
अपना दल से फॉर्म ए और फॉर्म बी स्वीकार ना करें। सियासी चालों में एक दूसरे को
पटखनी देने में जुटी मां बेटी की इन कोशिशों के बीच कोर्ट के ने कृष्णा पटेल की
याचिका भी खारिज कर दी थी, तब
अनुप्रिया पटेल को इस फैसले से बड़ी राहत मिली थी।
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अपना दल की लड़ाई पारिवारिक लड़ाई में इस बात पर कोई शक नहीं कि
अनुप्रिया पटेल राजनीति की दुनिया में तेजी से उभरती सख्शियत बनती चली गई ।
केन्द्र में मंत्री बनने के बाद एक तरह से अनुप्रिया ने अपना दल पर भी कब्जा कर
लिया है । कृष्णा पटेल के पास बेटी पल्लवी पटेल व पार्टी के आधे समर्थक जरूर मौजूद
हैं लेकिन पावर के मामले में कृष्णा फर्श पर नजर आ रही है । वहीं आधे समर्थकों एक
सांसद, एक
विधायक, भाजपा
में बढे कद व लोकप्रियता, मंत्रिमंडल
की शक्ति के साथ अनुप्रिया पटेल फर्श से अर्स पर पहुंच चुकी हैं ।
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आपको बता दे कि अनुप्रिया पटेल ने इस बात का अंदाजा लगा लिया था कि
मां के साथ दुबारा एक ही पार्टी में लौट पाना मुश्किल है । जबकि भाजपा में
अनुप्रिया को अपना दल के नाम पर ही इतनी पावर सौंपी गई है । ऐसे में मंत्री बनने
के बाद अनुप्रिया ने ताबड़तोड़ दौरा, रोड सो और पार्टी कार्यकर्ताओ से मिलकर अपना कद बढाती रही ।
इसी बीच अनुप्रिया ने चुनाव आयोग से अपना दल सोनेलाल के नाम से एक नई पार्टी का
रजिस्ट्रेशन करा लिया। इसकी भनक कृष्णा पटेल के गुट को मिलते ही इलाहाबाद हाईकोर्ट
के लखनऊ बेंच में याचिका दाखिल की गई थी। इस याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने
इसे खारिज कर दिया। अब अपना दल के दोनों गुटों के नेताओं व कार्यकर्ताओं को पार्टी
को लेकर आने वाले मुख्य फैसले का इंतजार है। जिसकी सुनवाई इलाहाबाद हाईकोर्ट में
पूरी हो चुकी है और जल्द ही फैसला आने की उम्मीद है ।
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