खास खबर EXCLUSIVE : देवराहा बाबा की कहानी,बाबा बालकदास की जुबानी

www.khaskhabar.com | Published : शुक्रवार, 22 सितम्बर 2017, 7:24 PM (IST)

गणेश दुबे,लखनऊ।भारत वर्ष के ऋषियों में में शिरोमणि महर्षि ब्रह्मलीन देवरहा बाबा के छाया की तरह हमेशा उनके साथ रहने वाले प्रिय शिष्य और समय काल को भी जीतने वाले बाबा बालकदास जी मीडिया से पहली बार खास खबर के जरिए बात की। इस दौरान खास खबर ने देवरहा बाबा और उनकी पीठ के समस्त पीठों के पीठाधीश बाबा बालकदास के आध्यात्मिक जगत को जानने की कोशिश की। गौरतलब है कि बाबा बालकदास जी की उम्र 100 साल के करीब होने के वावजूद भी उनके चेहरा बालक की तरह आज भी दिखता है। बाबा बालकदास काशी के अस्सी घाट पर स्थित द्वारिकाधीश मठ में रहकर देवरहा बाबा पीठ के समस्त देश विदेश के आश्रमों का संचालन करते हैं।मठ में अनेक गाड़ी घोडा होने के वावजूद भी बाबा बालकदास कहीं भी जाने के लिए गंगा जी के द्वारा ही जाते हैं। बाबा बालकदास जी देवरहा बाबा के साथ हमेशा उनकी मचान के नीचे गंगा जी, यमुना जी और सरयू माता के जल में गर्दन भर पानी में हमेशा रहते थे।जहां भी बाबा रहते थे बाबा बालकदास हमेशा उनके साया की तरह उनकी मचान के नीचे रहकर उनकी सेवा और साधना किया करते थे।

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खास खबर- बाबा आपके चेहरे पर बालक की तरह सहज भाव, क्रांति और प्राकृतिक हंसी हर समय रहती है, लोग आपकी उम्र का अंदाज़ा नही लगा पाते आपकी उम्र क्या है?बाबा बालक दास- स्वभावतः हँसते हुए समाधि के पार मनुष्य के शरीर पर देश और काल का प्रभाव नही पड़ता। उम्र का प्रभाव योगियों और महर्षियों पर नही पड़ता।खास खबर-बाबा आपकी मुलाकात देवरहा बाबा से कैसे हुई?
बाबा बालकदास-(कुछ देर मौन रहकर) बचपन में मुझे हिमालय पर्बत पर जाकर कठिन साधना करने की कामना हुई। मैंने सुन रखा था कि साधना हिमालय की एकांत पहाड़ियों पर होती है।उसी कामना से मैंने बचपन में लोगों से पूछा की हिमालय पर जाना कैसे सम्भव होगा?लोगों ने कहा कि ट्रेन से हिमालय जा सकते हैं, मैं ट्रेन देखा नही था जैसे तैसे मैंने ट्रेन पकड़ी और ट्रेन हिमालय की बजाय काशी लेकर आ गई।काशी स्टेशन पर उतरकर मैंने पूछा हिमालय का रास्ता किधर है, लोगों ने कहा यह तो काशी है, हिमालय यहां से बहुत दूर है।मैंने सोचा रात काफी हो गई है चलो यही रुकता हूँ सवेरे जाऊंगा हिमालय।मैं कुछ दूर चलकर थक कर रुक गया और फिर एक जगह लोगों से पूछा कबीर साहेब का आश्रम कहां मिलेगा (क्योंकि मैंने कबीर साहेब के बारे में सुन रखा था कि उनका जन्म काशी में ही हुआ था)?लोगों ने कहा यहीं सो जाओ कल सवेरे कबीर आश्रम पर पहुंचा देंगे।

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मैं वही सो गया मेरे सोते ही वो लोग मेरा सामान झोला और मेरी धोती कपड़ा लेकर गायब हो गए।मैं सवेरे उठा तो देखा की मेरा सामान गायब है। मैंने सोचा मैं स्नान ध्यान कैसे करूँगा।फिर मैं चल दिया थोड़ी दूर चलने पर गंगा जी थी तब तक जो लोग मेरा सामान चुराकर लेकर भाग गए थे वो मुझे खोजते हुए आये और मुझसे क्षमा प्रार्थना करके मेरा सामान और कपड़ा वापस कर दिए। अपने रात में देखे गए सपनो को भी उन्होंने मुझसे बताया।फिर मैं गंगा स्नान करने गया, पहली बार मैं किसी झील, सरोवर और नदी में स्नान कर रहा था। मैं डूबने लगा, फिर मुझे किसी ने खींचकर बाहर निकाला , कौन निकाला नही पता। मैंने वापस हिमालय जाने की सोची। गंगा पार मुझे एक ऊँचा जगह महल की तरह दिखा, मैंने सोचा वही शायद ट्रेन मिलेगी हिमालय जाने के लिए।

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मैं एक नाव में बैठ गया जिसमें बहुत से लोग बैठे थे। नाव बिलकुल गंगा जी के बीचोबीच रेता पर जाकर रुकी। सभी लोग नाव से उतरने लगे। तभी मेरे ऊपर देवरहा बाबा की दृष्टि पड़ी। उन्होंने मुझे अपने पास बुलाया और फिर मैं हमेशा उनकी मचान के नीचे गंगा जी में ही रहने लगा।ब्रह्मलीन देवरहा बाबा के साथ साथ मैंने देश विदेश की कई यात्राएं की और मुझे देवरहा बाबा हिमालय तथा तिब्बत की पहाड़ियों पर भी ले गयेऔर इस प्रकार देवरहा बाबा की छाया में मैं अबतक साधना और ब्रह्म में लीन हूँ।खास खबर-बाबा देवरहा बाबा का आश्रम कहा कहां है?बाबा बालकदास जी-बच्चा बाबा का आश्रम पूरी दुनिया में है जिसमे प्रमुख रूप से यूपी के देवरिया जिले के सलेमपुर के पास मईल में सरयू नदी के किनारे, काशी में गंगा जी के किनारे अस्सी घाट पर द्वारिकाधीश मठ, विंध्य पर्वत मालाओं पर स्थित अमरावती पर्वत, नर्मदा उदगम स्थल अमरकंटक, यमुना नदी के किनारे वृंदावन और तिब्बत पर्वत में अति दुर्लभ निर्जन स्थान ज्ञानगंज इत्यादि में है।तिब्बत स्थित ज्ञानगंज में ऋषि मण्डल है जहां देवरहा बाबा अब भी अज्ञात रूप में विद्यमान हैं।

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खास खबर-देवरहा बाबा चमत्कार भी करते थे?बाबा बालक दास-बाबा हमेशा अत्यंत सहज, सरल और सुलभ थे उनके सानिध्य में वृक्ष, वनस्पति भी अपने को आश्वस्त अनुभव करते रहे।जून 1987 की बात थी , वृंदावन में यमुना पार देवरहा बाबा का डेरा जमा हुआ था। अधिकारियों में अफरातफरी मची थी। प्रधानमंत्री राजीव गांधी को बाबा के दर्शन के लिए आना था। प्रधानमंत्री के आगमन और यात्रा के लिए इलाके की मार्किंग कर ली गई। आला अफसरों ने हैलीपैड बनाने के लिए वहां लगे एक बबूल के पेड़ की डाल काटने के निर्देश दिए। भनक लगते ही देवरहा बाबा ने एक बड़े पुलिस अफसर को बुलाया और पूछा कि पेड़ को क्यों काटना चाहते हो? अफसर ने कहा, प्रधानमंत्री की सुरक्षा के लिए जरूरी है। बाबा बोले, तुम यहां अपने पीएम को लाओगे, पीएम का नाम होगा कि वह साधु-संतों के पास जाता है, लेकिन इसका दंड तो बेचारे पेड़ को भुगतना पड़ेगा।वह मुझसे इस बारे में पूछेगा तो मैं उसे क्या जवाब दूंगा? नहीं, यह पेड़ नहीं काटा जाएगा। अफसरों ने अपनी मजबूरी बताई कि यह दिल्ली से पीएमओ ऑफिस से निर्देश है, इसलिए इसे काटा ही जाएगा।प्रधानमंत्री का हेलीकॉप्टर उतरने के लिए हेलीपैड बनाना है।मगर बाबा जरा भी राजी नहीं हुए। उन्होंने कहा कि यह पेड़ होगा तुम्हारी निगाह में, मेरा तो यह सबसे पुराना साथी है, दिन रात मुझसे बतियाता है, यह पेड़ नहीं कट सकता। इस घटनाक्रम से बाकी अफसरों की दुविधा बढ़ती जा रही थी, आखिर बाबा ने ही उन्हें तसल्ली दी और कहा कि घबड़ा मत, तुम्हारे पीएम का कार्यक्रम नही होगा, तुम्हारे पीएम का कार्यक्रम मैं कैंसिल करा देता हूं।आश्चर्य कि दो घंटे बाद ही पीएम आफिस से रेडिग्रामयो आ गया कि प्रोग्राम स्थगित हो गया है।

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कुछ हफ्तों बाद राजीव गांधी वहां आए, लेकिन पेड़ नहीं कटा। बाबा का दर्शन करने इंदिरा गांधी, शिवराज सिंह, अशोक सिंघल, राजेंद्र प्रसाद, अटल बिहारी बाजपेयी सहित कई बड़े नेता आते पर जिसको बाबा को दर्शन देना होता उसे ही देते नही तो वापस कर देते थे।पूरे विश्व की मीडिया देवरहा बाबा का कवरेज करने आती थी।सरल और सादा जीवन व्यतीत करने वाले देवरहा बाबा तड़के उठते, चहचहाते पक्षियों से बातें करते, फिर स्नान के लिए यमुना, सरयू और गंगा की ओर निकल जाते, फिर लंबे समय के लिए ईश्वर में लीन हो जाते। पूरी ज़िंदगी नदी किनारे एक मचान पर ही काट दी। उन्हें या तो बारह फुट ऊंचे मचान में देखा जाता था या फिर नदी के बहते जल में खड़े होकर ध्यान आदि करते। आठ महीना मइल में, कुछ दिन बनारस में, माघ के अवसर पर प्रयाग में, फागुन में मथुरा में और कुछ समय हिमालय में रहते थे बाबा। भक्त कहते हैं कि बच्चों की तरह भोला दिल था उनका। कुछ खाते पीते नहीं थे, उनके पास जो कुछ आता उसे दोनों हाथ लोगों में ही बांट देते। वह दयावान थे, सबको आशीर्वाद दिया करते।

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बाबा कहते थे कि जबतक गो हत्या के कलंक को पूरी तरह नहीं मिटा सकते, तबतक भारतीय समृद्ध नहीं हो सकते, यह भूमि गो पूजा के लिए है, गो पूजा हमारी परंपरा में है। बाबा की सिद्धियों के बारे में हर तरफ खूब चर्चा होती थी। कहते हैं कि जार्ज पंचम जब भारत आए तो उनसे मिले। जार्ज को कभी उनके भाई ने बताया था कि भारत में सिद्ध योगी पुरुष रहते हैं, तब उन्हें यह बताया गया था कि किसी और से मिलो ना मिलो, देवरिया जिले में दियरा इलाके में, मइल गांव जाकर, देवरहा बाबा से जरूर मिलना। उनके पास लोग हठयोग सीखने भी जाते थे। सुपात्र देखकर वह हठयोग की दसों मुद्राएं सिखाते थे। योग विद्या पर उनका गहन ज्ञान था। ध्यान, योग, प्राणायाम, त्राटक समाधि आदि पर वह गूढ़ विवेचन करते थे। ध्यान, प्रणायाम, समाधि की पद्धतियों के वह सिद्ध थे ही। धर्माचार्य, पंडित, तत्वज्ञानी, वेदांती उनसे कई तरह के संवाद करते थे। उन्होंने जीवन में लंबी लंबी साधनाएं कीं।
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15 जून 1990 में योगिनी एकादशी का दिन और घनघोर बादल छाए थे। उस दिन की शाम को बाबा ने इह लीला का संवरण किया और ब्रह्मलीन हो गए। उन्हें मचान के पास ही यमुना की पवित्र धारा में जल समाधि दी गई। दो दिन तक उनके शरीर को यमुना किनारे भक्तों के दर्शन के लिए रखा गया था। बाबा के ब्रह्मलीन होने की खबर देश-देशांतर में फैली और हजारों लोग उन्हें विदा देने के लिए उमड़ पड़े। उन दिनों संचार और संपर्क के साधन आज की तरह तीव्र और सुलभ नहीं थे, फिर भी सूचना पाकर भारत के अलावा यूरोपीय देशों से भी श्रद्धालु उनके अंतिम दर्शनों के लिए आए।

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खास खबर-देवरहा बाबा कितने साल तक जिए?बाबा बालकदास जी-देवरहा बाबा के जन्म के सम्बन्ध में कोई प्रामाणिक जानकारी नहीं है. बाबा कब पैदा हुए थे, इसका कोई प्रामाणिक रिकार्ड नहीं है तथापि लोगों का विश्वास है कि वे ३०० से ५०० वर्षों से अधिक जिए। न्यूयार्क के सुपर सेंचुरियन क्लब द्वारा जुटाये गये आकड़ों के अनुसार पिछले दो हजार सालों में चार सौ से ज्यादा लोग एक सौ बीस से तीन सौ चालीस वर्ष तक जिए हैं। इस सूची मे भारत से देवरहा बाबा के अलावा तैलंग स्वामी का नाम भी है। बाबा को कभी किसी खाते-पीते देखा न वस्त्र धारण करते या शौचादि क्रिया करते। बाबा सांसारिकता से सर्वथा दूर थे। इस प्रकार देवरहा बाबा के प्रिय शिष्य बाबा बालकदास जी से किसी भी मीडिया ग्रुप की पहली बातचीत खास खबर ने की है।

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