मांगलिक शब्द का अर्थ कुछ अलग है लेकिन अपने निजी स्वार्थ के लिए कुछ
ज्योतिषी इसे राई का पहाड़ बन देते हैं। देखा जाए तो मंगल शब्द सुनने में
इतना मीठा और सुन्दर हैं, क्या वह किसी का बुरा/अमंगल कर सकता हैं ?
ज्योतिशास्त्र में कुछ नियम बताए गये हैं जिससे वैवाहिक जीवन में मांगलिक
दोष नहीं लगता है, आइये इसे समझें–
कुण्डली में मंगल दोष का निवारण ग्रहों के मेल से नहीं होता है तो व्रत और अनुष्ठान द्वारा इसका उपचार करना चाहिए।
मंगला गौरी
और वट सावित्री का व्रत सौभाग्य प्रदान करने वाला है। अगर जाने अनजाने
मंगली कन्या का विवाह इस दोष से रहित वर से होता है तो दोष निवारण के लिए
इस व्रत का अनुष्ठान करना लाभदायी होता है।
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जिस कन्या की कुण्डली में मंगल दोष होता है वह अगर विवाह से पूर्व
गुप्त रूप से घट से अथवा पीपल के वृक्ष से विवाह करले फिर मंगल दोष से रहित
वर से शादी करे तो दोष नहीं लगता है।
प्राण प्रतिष्ठित विष्णु प्रतिमा से विवाह के पश्चात अगर कन्या विवाह करती है तब भी इस दोष का परिहार हो जाता हैा
मंगलवार के दिन व्रत रखकर सिन्दूर से हनुमान जी की पूजा करने एवं हनुमान चालीसा का पाठ करने से मंगली दोष शांत होता है।
कार्तिकेय जी की
पूजा से भी इस दोष में लाभ मिलता है.महामृत्युजय मंत्र का जप सर्व बाधा का
नाश करने वाला है। इस मंत्र से मंगल ग्रह की शांति करने से भी वैवाहिक
जीवन में मंगल दोष का प्रभाव कम होता है।
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वस्त्र में मसूर दाल, रक्त चंदन, रक्त पुष्प, मिष्टान एवं द्रव्य लपेट कर नदी में प्रवाहित करने से मंगल अमंगल दूर होता है|
मंगल दोष के
मामले में सबसे ज्यादा ध्यान अपने स्वभाव का रखना चाहिए। अपने खान-पान की
आदतों में बदलाव लाएं। क्योंकि गर्म व ताजा भोजन करने से मंगल मजबूत होता
है। इससे पाचन क्रिया और मनोदशा भी ठीक रहती है। इससे निबटने का सबसे सरल
उपाय है हनुमान जी की नियमित उपासना। यह मंगल के हर तरह के दोष तो खत्म
करने सहायक है।
हर मंगलवार को शिवलिंग पर कुमकुम चढ़ाएं। इसके साथ ही शिवलिंग पर लाल मसूर की दाल और लाल गुलाब अर्पित करें।
मंगल दोष
के निवारण के लिए मूंगा रत्न भी धारण किया जाता है। रत्न जातक की कुंडली
में मंगल के क्षीण अथवा प्रबल होने या अंश के अनुसार उसकी डिग्री के हिसाब
से पहना जाता है।
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घट विवाह भी है उपाय
ज्योतिशास्त्र में यदि कन्या की कुंडली मै
मांगलिक दोष का परिहार नही हो रहा हो तो उपाय के रूप मे कन्या का प्रथम
विवाह सात फेरे किसी घट (घडे) या पीपल के वृक्ष साथ कराए जाने का विधान है ।
इस प्रकार के उपाय के पीछे तर्क यह है कि मंगली दोष का मारक प्रभाव उस घट
या वृक्ष पर होता हे, जिससे कन्या का प्रथम विवाह किया जाता है । वर दूसरा
पति होने के कारण उस प्रभाव से सुरक्षित रह जाता है
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घट विवाह शुभ विवाह मुहूर्त और शुभ लग्न मे पुरोहित द्वारा सम्पन्न कराया
जाना चाहिये। कन्या का पिता पूर्वाभिमुख बैठकर अपने दाहिने तरफ कन्या को
बिठाएं। कन्या का पिता घट विवाह का सकल्प लें। नवग्रह,गौरी गणेशादि का पूजन
,शांति पाठ इत्यादि करे । घट की षोडषोचार से पूजा करे। इसके बाद देवताओ का
विसर्जन करे और ब्राह्मणो को दक्षिणा दे बाद मे चिरंजीवी वर से कन्या का
विवाह करें।
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