नारद के बाद कबूतर अख़बार हुए…। राजा महाराजा के अख़बार ढोल नगाड़ा थे..।
खबरनवीसी का यह क्रम चलते- चलते आज न्यू मीडिया यानी डिजिटल मीडिया तक पहुंच गया
है। युवा वर्ग ने इस बदलाव को जिस तेजी से आत्मसात किया है, उसे देख कर हैरानी होती है।
नारद जी अपने आप में अपने युग के भरेपूरे अख़बार हुए। वे देववाणी का संवाद जनजन
तक पहुंचाने का कार्य किया करते थे। फिर कबूतर आये। इनका उपयोग सन्देश लेने और
देने में किया गया। इन्होंने भी पत्रकारों और अख़बारों जैसी भूमिका लंबे समय तक
निभाई। उसके बाद राजा महाराजाओं ने अपने सन्देश वाहकों के माध्यम से गांवों के
चौराहों पर ढोल नगाड़े की आवाज के साथ तुगलकी फरमान पहुंचाए।
प्रिंट पत्रकारिता का युग भी आया, फिर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने दस्तक दी और आज डिजिटल न्यूज़पेपर के नए युग की ओर
देश दुनियां तेज गति से बढ़ रही है। विकसित देशों और अपने देश की नई पीढ़ी की ऑनलाइन
न्यूज़पेपर के प्रति दीवानगी हर कहीं देखी जा सकती है। शहरों से लेकर दुर्गम गांवों
तक खबर को तुरंत जानने पढ़ने का प्रचलन फ़ास्ट फ़ूड की तरह बढ़ता ही जा रहा है।
विकसित देशों में अखबारी कागज के लगातार महंगे होने और पर्यावरण पर असर पड़ने
के कारण समाचार पत्र प्रकाशन बंद होता जा रहा है। इसके स्थान पर ऑनलाइन मीडिया
तेजी से फैल रहा है। जैसे-जैसे इंटरनेट का प्रसारण होगा और यह सस्ता होगा,लोग विकासशील देशों में भी अख़बारों को भूलने लगेंगे। हालांकि इसके लिए अभी
सालों लग सकते हैं।
ऑनलाइन न्यूज़ और प्रिंट मीडिया में वही अंतर है जो फ़रारी और मारुति 800 में है।
जाहिर है कि आने वाले समय में सब फ़रारी की गति से न्यूज़ जानना-पढ़ना चाहेंगे। इस
दृष्टि से मुझे लगता है कि हमारे देश में भी आने वाले समय में नए मीडिया का प्रचलन
तेजी के साथ बढ़ेगा। आपकी राय क्या है?
वरिष्ठ पत्रकार
कृष्ण भानु द्वारा फेसबुक
पर की गई इस टिप्पणी को आगे बढ़ाते हुए- पत्रकार शशि भूषण पुरोहित ने कहा- “आपकी बात से पूर्णतया सहमत। सूचना व क्रांति की बदलती दुनिया का सटीक विश्लेषण
किया आपने। एक बात और है। अब उन पत्रकारों के दिन भी लद गए हैं जो खुद को तकनीक के
साथ बदल नहीं पाए। अब पत्रकार भी डिजिटल हो गए हैं। आने वाला समय वेब जर्नलिज्म का
है।"
पत्रकार H. Anand Sharma ने लिखा, “सर, आपने बिल्कुल ठीक कहा। डिजिटल मीडिया- प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक (विजुअल) और रेडियो (ऑडियो) तीनों का कंबिनेशन है। इसमें तीनों
एक साथ काम कर सकते हैं। इससे भी बड़ी दिलचस्प बात यह है कि इसमें खबर लिखने वाले
(पत्रकार) और पढ़ने वाले (पाठक) के मध्य सीधे संवाद की भी व्यवस्था है। यानी आपने
यदि ऊटपटांग खबर छापी तो पाठक खबर के नीचे ही टिप्पणी कर आपकी ऐसी तैसी फेर सकता है। तुरंत सूचना प्रसारित करने की सुविधा तो इसमें है ही। लेकिन
इसे लोकप्रिय होने में अभी समय लगेगा।”
Rajesh
Verma लिखते हैं- “मैंने आनलाइन को ही इलेक्ट्रॉनिक में ही
समाहित कर दिया था भानू जी। बाकि आनलाइन का तो यह हाल है जैसे हेडिंग होता है- सावधान
सरकार के इस फैसले से आपकी मुसीबत और बढ़ सकती है। प्रत्येक नागरिक पर पड़ेगा यह
फैसला भारी.. लेकिन लिंक के अंदर होता है पैट्रोल /डीजल 50 पैसे महंगा। ऐसा हाल है
इनका।”
वरिष्ठ पत्रकार Suraj Thakur ने कहा- “क्षमा सर, शायद आप भूल गए। आम आदमी के मीडिया का
जिक्र करना भूल गए शायद, गांव में कोई मर जाता है तो आज भी उसी शंख को तीन बार बजाया जाता
है, सीधी घ्वनि में और सबको खबर हो जाती है।”
Pandit
Sanjay Mahaan लिखते हैं- “अखबारें भी रहेंगी, लेकिन न्यू मीडिया छलाँगे भरेगा और यह दिन
अब दूर नहीं।”
Prakash
Badal ने कहा- न्यू मीडिया बढ़ेगा नहीं, भाई साहब बढ़ चुका है..
तथाकथित नंबर वन अखबार से अधिक पाठक फेसबुक पर हैं.. अभी घटना घटती है और चुटकी
में व्हाट्स एप पर आ जाती है | प्रिंट मीडिया के पाठकों में बहुत बड़ी
गिरावट आनी शुरू हुई है | आने वाला समय डिजिटल मीडिया का है..
Ram Murti
Lath ने प्रतिक्रिया
दी- Krishan Bhanu ji you have rightly
pointed that what will be the situation in future.I agree being an ex-student
of journalism and mass communication.
Hari
Sharma ने अपनी
प्रतिक्रिया में कहा- इस श्रेष्ठ विश्लेषण या यूं कहें, दूरगामी सोच पर मैं प्रभु से अक्षरशः सहमत हूं।
Dhiru
Pandit ने कहा- वक्त तेजी से बदल रहा है…कोई वक्त के साथ कदमताल क्यों नहीं करना चाहेगा…आपका आंकलन शत प्रतिशत सही है प्रभु।
Chandrakant
Sharma ने कहा- डिजिटल या यूं कहिये कि ऑन लाइन न्यूज़पेपर में लिखने की आजादी है, जबकि प्रिंट में यह आजादी सिकुड़ गई है.आपकी
बात में दम है सर.
नोटबंदी की राय देने वाले की पूरी राय नहीं मानी...