रामनरेश के निधन पर रो पड़े रमाशंकर, कहा- राजनीति के स्वर्णिम युग का अन्त

www.khaskhabar.com | Published : मंगलवार, 22 नवम्बर 2016, 3:13 PM (IST)

आजमगढ़। जिले में बाबूजी कहकर पुकारे जाने वाले सूबे के पूर्व मुख्यमंत्री रामनरेश यादव के निधन की सूचना पर अपने जमाने के जाने माने समाजवादी नेता रहे बाबू रमाशंकर यादव फफक-फफक कर रो पड़े। कहा उनके निधन के साथ ही राजनीति के एक स्वर्णिम युग का अन्त हो गया। बाबू रमाशंकर ने अश्रुधारा के बीच ही रामनरेश जी के साथ बिताये संस्मरणों को ताजा किया।
कहा एक समय की बात है जब त्रिपुरारी पूजन प्रताप सिंह उर्फ बच्चा बाबू ने जिला परिषद अध्यक्ष के लिए दावेदारी ठोंक दी। रामनरेश यादव जी भी जिद पर अड़ गये कि यह चुनाव वह भी लड़ेंगे। ऐसे में सभी बड़े समाजवादी नेताओं ने बाबू रमाशंकर यादव जी से आग्रह किया कि रामनरेश जी को अकेले वही मना सकते हैं। आपके एक बार कहने भर से रामनरेश जी मान गये और बच्चा बाबू अध्यक्ष बन गये। इसके कुछ ही दिनों बाद पूर्व प्रधानमंत्री चन्द्रशेखर जी एवं रामधन जी के प्रयास से बच्चा बाबू को आजमगढ़ लोकसभा सीट से टिकट मिल गया।
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रामनरेश जी भी इस टिकट के दावेदार थे। बच्चा बाबू दिल्ली से टिकट लेकर लखनऊ पहुंचे, उधर रामनरेश जी ने बाबू रमाशंकर के मडय़ा स्थित आवास पर धरना शुरू कर दिया कि उन्हें कितनी बार कुर्बानी देनी पड़ेगी। यह वार्तालाप चल ही रहा था कि तभी बच्च बाबू का फोन बाबू रमाशंकर के पास आया कि उन्हें सांसदी का टिकट मिल गया है। बाबू रमाशंकर ने उनसे कहा कि वह लखनऊ से ही वापस दिल्ली जाकर टिकट वापस कर दें, क्योंकि यह चुनाव रामनरेश जी ही लड़ेंगे। बच्चा बाबू ने तत्काल दिल्ली जाकर टिकट वापस कर दिया। रामनरेश जी चुनाव लड़कर सांसद बने। यह अलग बात है कि कुछ ही दिनों बाद सूबे का मुख्यमंत्री बन जाने के कारण रामनरेश जी ने लोकसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया और उपचुनाव में कांग्रेस की मोहसिना किदवई ने जीत दर्ज की।
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शून्य से शिखर तक का सफर तय किये थे रामनरेश यादव

आजमगढ़। जिले के फूलपुर तहसील क्षेत्र के आंधीपुर गांव में एक जुलाई 1928 को जन्मे रामनरेश यादव ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री एवं मध्य प्रदेश के राज्यपाल पद को सुशोभित किया। यह कहना गलत नहीं होगा कि वह शून्य से शिखर तक का सफर तय किये। वर्ष 1946 में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से एम.ए., एल.एल.बी. की डिग्री हासिल करने के बाद वर्ष 1947 में श्री यादव को एंग्लो बंगाली इण्टर कालेज भेलूपुर वाराणसी में प्रवक्ता पद पर नियुक्ति मिली। वर्ष 1953 में शिक्षक की नौकरी को छोड़कर उन्होंने आजमगढ़ में वकालत शुरू कर दिया। शिक्षा के दौरान आचार्य नरेन्द्रदेव के नेतृत्व में समाजवादी आन्दोलन से जुड़े रहे।
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वर्ष 1962 में सोशलिस्ट पार्टी से सगड़ी विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़े मगर हार गये। जीत कांगे्रस के इन्द्रासन को मिली। वर्ष 1967, 1969 व 1974 के चुनाव में वह टिकट नहीं पाये मगर पार्टी के जिला मंत्री पद पर काम करते रहे। वर्ष 1977 में आजमगढ़ संसदीय क्षेत्र से जनता पार्टी के टिकट पर सांसद चुने गये। 13 जून 1977 को वह यूपी के मुख्यमंत्री बने और सांसदी से त्यागपत्र दे दिया। वर्ष 1977 में ही एटा जिले के निधौनी कला से विधायक चुने गये।
वर्ष 1979 में उन्हें मुख्यमंत्री पद से हटाकर बनारसी दास को प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाया गया। वर्ष 1985 में शिकोहाबाद से निर्दल चुनाव लड़कर विधायक बने। इसके बाद वर्ष 1988 में जनता पार्टी के टिकट पर राज्यसभा सदस्य चुने गये और 1994 तक का अपना कार्यकाल पूरा किया। इसके बाद वह जनता पार्टी को अलविदा कहते हुए कांगे्रस में शामिल हो गये।
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कांगे्रस के टिकट पर श्री यादव 1996 में जिले के फूलपुर विधानसभाक्षेत्र से विधायक बने। विधायक रहते हुये ही वह वर्ष 1999 में आजमगढ़ संसदीय क्षेत्र से कांगे्रस के टिकट पर चुनाव लड़े, मगर चौथे स्थान पर संतोष करना पड़ा। वर्ष 2002 में वह कांगे्रस के टिकट पर ही फूलपुर से लगातार दूसरी बार विधायक बने।
इसके बाद वह वर्ष 2007 में फूलपुर विधानसभाक्षेत्र से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़े मगर बुरी तरह हार गये। इस चुनाव में वह तीसरे स्थान पर रहे। कांगे्रस हाईकमान ने वर्ष 2010 में उन्हें पार्टी के केन्द्रीय चुनाव समिति का सदस्य बनाया। लम्बा राजनैतिक सफर तय करते हुए वह 26 अगस्त 2011 को मध्य प्रदेश के राज्यपाल बनाये गये और 2016 तक का अपना कार्यकाल पूरा किया। उनके निधन से पूरा जिला मर्माहत है।
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