आयुर्वेद के ग्रंथों में इसके गुणों की व्यापाक
रूप से चर्चा की गई है और इसके सेवन को अत्यधिक फायदेमंद और बलदायक बताया
गया है। अनन्नास के पौधों में जनवरी-फरवरी में फल लगना आरम्भ होता है। इसे
नवम्बर तक मार्केट में फलों की दुकानों पर सजे देखा जा सकता है। अनन्नास
बतौर फल खने के अलावा रस, शर्बत, मुरब्बा के रूप में भी सेवन किया जाता है।
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यदि पेट में अजीर्ण हो तो पके अनन्नास के छोटे-छोटे टुकडे करके सेंधा नमक
और कालीमिर्च का चूर्ण लगाकर खाने से लाभ मिलता है। इस प्रकार अनन्नास
ग्रहण करने से पेट के कृमि हफ्ते भर में निकल जाते हैं। जिन बच्चों को पेट
में अक्सर कृमि हो जाते हैं, उन्हें उक्त प्रकार से अनन्नास अवश्य दें।
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अनन्नास मधुर, तृप्तिकारक व स्फूर्तिदायक फल है। इसमें कैल्शियम, फाइबर,
मैग्रीनशियम और विटामिन सी प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। यह पीलिया,
उच्च रक्तचाप, यकृत दोष आदि रोगों में लाभकारी होता है। इसमें ब्रोमेलिन
नामक एंजाइम भी पाया जाता है, जो प्रोटीन को पचाने, ब्रोंकाइटिस, एब्सेस
न्यूमोनिया, गुर्दे का संक्रमण आदि में कार्य करता है। इससे शरीर की
प्रतिरेाधक क्षमता भी बढती है। इससे गले को ठंडक मिलती है साथ ही गले के
रोगों से बचाव होता है।
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शोधों के मुताबिक दिन में 3 बार अनन्नास खाने से बढती उम्र के साथ कम होती आंखों की रोशनी का खतरा कम हो जाता है।
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अनियमित माहवारी हो, तो इसके रस का नियमित सेवन करेने से माहवारी सामान्य हो जाती है।
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