एक स्थान पर मेवाड़ के प्रमुख धामों के हो रहे दर्शन

www.khaskhabar.com | Published : शुक्रवार, 11 नवम्बर 2016, 9:42 PM (IST)

उदयपुर। बी.एन. विश्वविद्यालय परिसर में लगे हिन्दू अध्यात्म एवं सेवा संगम के मेले में मेवाड़ के विभिन्न धामों से भगवान पधारे हैं। मेला प्रांगण में प्रतिदिन सुबह और शाम प्रभु की छवियों की आरती परम्परानुसार हो रही है। वहीं इनकी छवियों के दर्शन लाभ दिन भर हो रहे हैं। प्रभु का प्रसाद भी मिल रहा है। यहां पर भगवान एकलिंगनाथ, श्रीनाथ जी, माता त्रिपुरा सुंदरी, श्री सांवलिया सेठ, द्वारिकाधीष, ऋशभदेव जी पधारे हुए हैं। शहर के श्रद्धालु इनके अलावा संध्या में नियमित रूप से होने वाली गंगा आरती की ओर भी विषेश रूप से आकर्शित हैं। महादेव की जटा से बहती गंगा और उसकी आरती के विषाल स्वरूप से मां गंगा का अलौकिक रूप निष्चित ही आस्थावानों की आंखों में बस गया है।

एकलिंगजी
मेवाड़ के ईष्टदेव और शासक के रूप में प्रतिष्ठित मेदपाटेश्वर एकलिंगनाथ का इस मेले में पधारना उदयपुर की जनता का परम सौभाग्य है। उदयपुर 22 किलोमीटर दूर मेवाड़ की काशी कहलाने वाले कस्बे कैलाशपुरी में विराजित एकलिंगनाथ लकुलिष सम्प्रदाय का शिवधाम है। इस मंदिर का निर्माण बप्पा रावल ने 8वीं शताब्दी में करवाया था। बाद में इस मंदिर का समय-समय पर पुनरूद्धार किया गया। वर्तमान मंदिर का निर्माण महाराणा रायमल ने 15वीं शताब्दी में करवाया था। इस परिसर में कुल 108 मंदिर हैं। यहां पर सुबह 4 बजे से 6:30 बजे तक, 10:30 से दोपहर 1:30 तक तथा शाम 5:30 से रात 8 बजे तक दर्शन होते हैं। इस मेले में विराजित एकलिंगनाथ की छवि रूप का दिन भर दर्षन कर प्रसाद प्राप्त किया जा सकता है और प्रात:-सायं की आरती का दर्शन लाभ प्राप्त कर सकते हैं।



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श्रीनाथ जी
दिल्ली के बादशाह आलमगीर औरंगजेब के मथुरा पर हमले के कारण 1672 ईस्वी में श्रीनाथ जी मेवाड़ पधारे। महाराणा राजसिंह ने उदयपुर से 40 किलोमीटर दूर सिंहाड़ गांव के निकट हवेली में शरण दी और 80 गांवों की जागीर मय रिसाला बंदोबस्त के लिए भेंट की। तब से श्रीनाथ जी वहीं बिराजित है। प्रभु श्रीनाथ जी की झांकी सेवा संगम के मेले में जनता के दर्शनार्थ सजाई गई है। मंदिर और पुष्टीमार्ग की परम्पराओं और सहज भाव समझाने के लिए प्रदर्शनी भी लगाई गई है। प्रभु श्रीनाथ जी की आरती के दर्शन और पूजा पद्धति की जानकारी भी यहां प्राप्त की जा सकती है।



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त्रिपुरा सुन्दरी
मेवाड़-वागड़ के सबसे प्रतिष्ठित शक्तिपीठ त्रिपुरा सुंदरी बांसवाड़ा से लगभग 19 किलोमीटर दूर उमराई के छोटे से ग्राम में माताबाड़ी में स्थित है। मान्यता है कि मंदिर के आस-पास पहले कभी तीन दुर्ग थे। शक्तिपुरी, शिवपुरी तथा विष्णुपुरी नामक इन तीन पुरियों में स्थित होने के कारण देवी का नाम त्रिपुरा सुन्दरी पड़ा। मेले में माता त्रिपुरा सुंदरी की लकड़ी की प्रतिमा प्रतिष्ठित है। यहां पर नियमित रूप से सभी समय की आरती की जा रही है। मां त्रिपुरा सुंदरी के दर्शनार्थ जन आस्था उमड़ी हुई है और शहर व आस-पास से भक्त मां के दर्शनार्थ मेले में आ रहे हैं।



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द्वारिकाधीश
दिल्ली के बादशाह आलमगीर औरंगजेब के मथुरा पर हमले के कारण 1671 ईस्वी में द्वारिकाधीश मेवाड़ पधारे। महाराणा राजसिंह ने उदयपुर से 65 किलोमीटर दूर कांकरोली गांव के निकट हवेली में शरण दी और जागीर मय रिसाला बंदोबस्त के लिए भेंट की। प्रभु द्वारिकाधीष की झांकी सेवा संगम के मेले में जनता के दर्शनार्थ सजाई गई है। मंदिर और पुष्टीमार्ग की परम्पराओं और सहज भाव समझाने के लिए प्रदर्शनी भी लगाई गई है। प्रभु द्वारिकाधीश की आरती और पूजा भी नियमानुसार की जा रही है।



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सांवलिया जी
चित्तौडग़ढ़ जिले के मण्डफिया गांव में स्थित सांवलिया जी (श्री कृष्ण) विराजमान हैं। सांवलिया धाम में स्थित मूल प्रतिमा को देख कर लगता है कि यह 10वीं शताब्दी की रही होगी, लेकिन वर्तमान मंदिर 19वीं सदी में बनना शुरू हुआ था। वर्तमान में यह मेवाड़ में जनआस्था का केन्द्र है। यहां पर ट्रस्ट की ओर से मंदिर के अलावा धर्मशालाओं और शिक्षण संस्थाओं का भी निर्माण किया गया है। मेले में सांवलिया जी की झांकी सबसे पहले प्रदर्शित की गई है। यहां पर प्रभु की पूजा और आरती परम्परा के अनुसार की जा रही है और आगंतुकों को सबसे पहले प्रभु के दर्शन होते हैं।



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ऋषभदेव जी
ऋषभदेव (केसरियानाथ) उदयपुर-अहमदाबाद हाई-वे-8 पर 65 किलोमीटर दूर स्थित है। यहां पर प्रथम जैन तीर्थंकर ऋषभदेव (आदिनाथ) का मंदिर है। स्थानीय आदिवासी समुदाय इनकी पूजा काला बाबा के नाम से करता है। ऋषभदेव को केसरियानाथ के नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि मंदिर में केसर से पूजा की जाती है। इस मंदिर को मेवाड़ के चार मुख्य धार्मिक संस्थाओं में एक माना जाता है। मेला प्रांगण में ऋषभदेव की नियमित आरती हो रही है। यहां पर ऋशभदेव की छवि प्रदर्शित है।



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