जैसलमेर। चेतना के द्वारा जीवन में सब कुछ संभव है। सत्य भूमिका है, प्रेम पाठ है और करूणा कलश है। व्यासपीठ सत्य भूमिका का ही एक पर्याय है और सत्य की भूमिका लेप है। पाठ पवित्र वस्तु है इसी उद्गार के साथ व्यासपीठ से हजारों श्रोताओं को आशीर्वचन प्रदान करते हुए रामकथा के सातवे दिन मुरारी बापू ने कहा कि प्रेम क्या नहीं कर सकता है। प्रेम विराने को भी गुलिस्ता बना सकता है। वर्तमान में सब एक दूसरे को सुधारने में लगे हुए है। कथा में आने से तथा उसका श्रवण करने से सुधरने एवं सुधारने की संभावनायें बढ़ जाती है।
बापू ने भक्ति के बारें में विस्तार से चर्चा करते हुए बताया कि माता पिता और गुरू की सेवा रामदेव बाबा का प्रमाण है। उपाधि ध्यान की धारणा से जाती है। ध्यान स्वामित्व की धारणा है। ध्यान पर आसन लगायें। उसकी धारणा से ही उपाधियां नश्ट होती है। भाशा भिन्न भिन्न हो सकती है लेकिन उसका सार एक होता है। बापू ने रामकथा के दौरान प्रभु राम के जनक उपवन तथा सीता स्वयंवर प्रसंगों को दर्षाया।
समाधि के कई अर्थ
मुरारी बापू ने मानस रामदेव पीर के कथांक पर चर्चा करते हुए बताया कि रामदेवरा में बाबा की समाधि जीवंत रूप में विद्यमान है। वर्तमान के युग में जीवित समाधि को समझने के लिए पतंजलि के अश्टांग योग सूत्र की सीढिय़ों को पहचानना आवश्यक है। पतंजलि अन्तर जगत के वैज्ञानिक थे। उन्होंने समाधि की इसमें पूरी व्याख्या की है। जिसके जीवन से आदि, व्याधि और उपाधि निकल जाये वहीं समाधि है। गुणातित से पार सभी अवस्थाएं समाधि है। सात पतंजलि के आगे का कदम समाधि है। हम जैसे मनुष्य भी इस जीवन में जीवित समाधि पा सकते है उसके लिए जीवन मृत्यु केवल अवस्था के रूप में एक समान है। गुरू कृपा में हम जीवित समाधि की ओर बढ़ सकते है। नामदेव, मीरा, जैसल, तोरल, नरसी सभी जीवित समाधि का ही एक रूप है।
24 अंक महत्वपूर्ण
संस्कृति में 24 अंकों का महत्वपूर्ण स्थान है। सर्वमान्य तत्व गणना में संसार में 24 तत्व है। जैन धर्म में 24 तीर्थंकर तथा वेद माता गायत्री के मंत्र में भी 24 अक्षर है। हमारे यहां 24 अवतार अवतरित हुए है। बाबा रामदेव पीर ने भी 24 पर्चे दिए है। हमारे रोम रोम में पाप एवं बुराई भरी हुई है। बाबा पीर ने अपने पर्चे में कहा कि पाप से दूर रहो और निज कर्म में ध्यान धरों। गुरू चरण में पाप को सुनाने एवं प्रकाषित करने से इंसान पाप मुक्त हो सकता है। अपने धर्म में ध्यान रखना और पाप से डरते हुए जीव मात्र पर दया करना और भूखें को अन्न देना बाबा के पर्चे का अंष है। दया धर्म का मूल मंत्र है अत: हमें धर्म के निकट रहना चाहिए। अपनी बुराईयां एवं मन की पीड़ा दुनिया के सामने नही बल्कि गुरू के पास जाकर कहनी चाहिए। दूसरा फरमान सार और सार का विचार है। तीसरा गत गंगा में षामिल हो जाना है। चौथा सूत्र गुरू पद सेवा है। पांचवा फरमान तन के उजले एवं मन के मलिन प्रपंच से दूर रहे। छठा पर्चा सेवा धर्म का महत्व बहुत बड़ा है। सातवा पर्चा वचन विवेकी, आठवा पर्चा माता,-पिता, गुरू सेवा एवं अतिथि सत्कार, नौवा पर्चा पहली सवेरे पवित्र होकर आराध्य का नाम लेना एवं फिर अपना नित्य कर्म करना के बारें में बापू ने विस्तार से व्याख्या की।
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मानस में गत गंगा के 5 सूत्र
गीता के 12वे भाग में भक्ति को योग कहा गया
है। भक्ति बहती रहती है। गीता में लिखा गया है कि प्रसन्न रहों, अपेक्षा
ना करों तथा सब में हरि दर्षन करो। भक्ति करनी हो तो पांच चीजों को छोड दो।
भक्ति स्वयं योग होती है। भक्ति में यज्ञ, जप, तप तथा उपवास करने की जरूरत
नही है। षौक बहुत छोटी चीज है। विवेकी व्यक्ति ही पीर और नीर को विलख कर
सकता है। प्राणी मात्र में सम दृश्टि रखे और किसी से भी अपेक्षाये ंना करे।
यही सुखी जीवन का मूल मंत्र है।
युवाओं के लिए भक्ति का साधन बताते हुए
बापू ने कहा कि युवाओं को चाहिए कि अपने स्वभाव को सरल करो, बोलों तो सरल
बोलो और सुनों तो सरल सुनो। मन की कुटिलता छोड़ों क्योंकि सब अपना प्रारब्ध
भोग रहे है। क्यों किसी की निन्दा, ईश्या एवं द्वेश करों। हमारे प्रमाणिक
प्रयत्न एवं भगवान की कृपा से जो मिल रहा है उसमें संतुश्ट रहना भजन है।
भक्ति में प्यास तो हो लेकिन आषा ना हो। गंग गीता का एक और सूत्र विष्वास
या भरोसा है।
प्रत्येक नदी का एक फल
बापू ने कहा कि हम नदियों
के लिए लड रहे है लेकिन गत गंगा को भूल गये। हमारें यहां प्रत्येक नदी में
स्नान व पूजा करने से उसका प्रतिरूप फल मिलता है। तापी नदी में स्नान करने
से तपस्या, गंगा में स्नान करने से भक्ति मिलती है। विद्वान होना है तो
रेवा में स्नान करो। यमुना में स्नान करने से ब्रज भूमि, सरस्वती में स्नान
करने से ब्रह्म विद्या तथा सरयू में स्नान करने से ज्ञान की प्राप्ति होती
है। रूपावा नदी तलगाझरडा में स्नान करने से रामचरित मानस मिलती है। कावेरी
नदी में स्नान करने से संत मिलन, कृश्णा में स्नान करने से कृश्ण दर्षन
होते है। मानस की भक्ति में स्नान करों तो जप, तप, व्रत और उपवास की जरूरत
नही होती है।
सत्संग से साधु की प्रियता प्राप्त करें उसके बाद ही
श्रद्धा की पार्वती का दर्षन होगा। सच्ची श्रद्धा हो जाए तो कोई ना कोई
सदगुरू मिल ही जायेगा और वह कहेगा कि मैने राम को देखा है और मेरे साथ चलने
से तुझें भी राम के दर्षन हो जायेंगे।
बापू ने कहा कि इस कलि काल में
नौ चीजों से प्रभु की भक्ति की जा सकती है। यह नौ चीजे योग, जग्य, जप, तप,
व्रत, पूजा, राम नाम सुमिरन, राम नाम गायन और राम नाम श्रवण इनके अतिरिक्त
अन्य कोई साधन नही है।
जानकी भक्ति है तो धनुश अहंकार का प्रतीक
बापू
ने कहा कि अभिमान से भक्ति नहीं मिलती है। जानकी भक्ति और धनुश अहंकार का
प्रतीक है। रामकथा में सीता विवाह के प्रसंग का वर्णन करते हुए बताया कि
षिव धनुश (पिनाकपाणि) जब टूटा तो उसने स्वयं को प्रभु के चरणों में पाया।
अहंकार के टूटने पर ही भक्ति मिलती है और गुरू के सुमिरन के बिना अहंकार
नही टूटता है। बापू ने कहा कि उठो, जागों और लक्ष्य को प्राप्त करों यही
उपनिशेद का मूल सूत्र है।
बापू ने किया वृक्षारोपण
बापू ने
पर्यावरण के प्रति जागरूकता लाने के लिए षुक्रवार को गोमठ स्थित कृश्ण कुंज
में दो नीम, दो जामून एवं एक आम का पौधा लगाया। बापू ने लोगों से आह्वान
किया कि वे भी पर्यावरण के प्रति जागरूक रहे। बापू कथा के बाद श्रीमूल योगी
आश्रम रामदेवरा तथा बीएसएफ कैम्पस पहुंचे तथा वृक्षारोपण कर सीमा सुरक्षा
बल के जवानों से मुलाकात की।
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