Test Drive: केवल फाॅर्मल्टी नहीं, जरूरी है यह काम

www.khaskhabar.com | Published : बुधवार, 27 सितम्बर 2017, 5:10 PM (IST)

अगर आप कार खरीदने जा रहे हैं या जल्दी ही खरीदने की चाहत रखते हैं तो आपके लिए टेस्ट ड्राइव केवल फाॅर्मल्टी नहीं है, बल्कि बहुत जरूरी है। यह क्यों जरूरी है, यह अगली 5 स्लाईड में आपको पता चलेगा, तो चहिए बढ़ते हैं आगे ....


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1. जब भी आप किसी भी कार को टीवी पर या विज्ञापन में या शोरूम में देखते हैं तो वह दिखने में तो बहुत अच्छी लगती है लेकिन टेकनिकल फीचर्स की जानकारी या तो आपको होती नहीं, या फिर कागजी तक सीमित होती है। ऐसे में कार का इंजन कितनी पावर व टाॅर्क देता है, पिकअप कितना है या माइलेज कितना है या सस्पेंशन कैसा है, इसका पता टेस्ट ड्राइव से ही पता चल पाएगा।

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2. आपने कार के केटलाॅग या विज्ञापन में माइलेज पर तो जरूर गौर किया होगा। आमतौर पर सभी कारों का माइलेज 20 से 25 किमी प्रति लीटर के करीब बताया जाता है, यहां तक की SUV का भी। लेकिन सच तो यह है कि इतना माइलेज हैचबैक या छोटी कारों का भी नहीं होता। यह माइलेज ARAI सर्टिफिकेट के अनुसार है जबकि आॅरिजनल माइलेज इससे काफी कम होता है। हैचबैक कार का माइलेज करीब 20 से 22 के बीच और एसयूवी का माइलेज 12 से 15 किमी प्रति लीटर ही होता है। ऐसे में टेस्ट ड्राइव से माइलेज का ठीक-ठीक पता चल पाएगा।

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3. कार के फीचर्स का पता आपको टेस्ट ड्राइव के बाद ही लग पाएगा। आमतौर पर सभी कारों में इंफोटेन्मेंट सिस्टम और एसी सभी लेना पसंद करते हैं लेकिन इंफोटेन्मेंट सिस्टम का साउण्ड कितना है और एसी कितना जल्दी ठंडा करता है, यह आपको टेस्ट ड्राइव के समय ही पता चल पाएगा। शोरूम में जो कारें डिस्प्ले होती हैं, उसे चलाकर नहीं दिखाया जाता, बल्कि डिस्प्ले से ही ग्राहकों को आकर्षित किया जाता है।

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4. डिस्प्ले कार में सीटिंग व स्टीयरिंग कम्फर्ट का पता पूरी तरह से नहीं चल पाएगा। पता तो तब ही चल पाएगा, जब आप इसे चलाएंगे। ड्राइव के समय स्टीयरिंग व्हील बिलकुल अलग तरीके से ट्रीट करता है। जैसे कि कई कारों का स्टीयरिंग व्हील काफी हार्ड और कईयों का लाइट होता है। वहीं कार में बैठने के बाद सीटिंग कंडीशन का भी पता चल जाता है।

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5. कारों की सीट व डैशबोर्ड की हाईट एक जैसी नहीं होती और न ही रूफ। आपकी हाईट व फिजिक के हिसाब से ही कार सलेक्ट करें और इसका पता पहली ही टेस्ट ड्राइव में चल जाएगा। इसके अलावा, कार ड्राइव के समय इंजन कितनी आवाज करता है, इसका पता भी तब ही चल पाएगा।

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6. एक बात का विशेष ध्यान दें। आमतौर पर टाॅप वेरिएंट ही टेस्ट ड्राइव में इस्तेमाल किया जाता है। अगर आप मिड या बेस वेरिएंट खरीदने जा रहे हैं तो यह आप अपने साथ ही धोखा खाने जा रहे हैं। आप जिस भी वेरिएंट को खरीदने जा रहे हैं, डीलर से उसी माॅडल या वेरिएंट की टेस्ट ड्राइव कराने को कहें। इससे आपको उसकी आॅरिजनल्टी का पता चल पाएगा।

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7. टेस्ट ड्राइव कार व नई कार में थोड़ा बहुत फर्क हो सकता है। कई कारों का स्टीयरिंग व्हील कार के थोड़े पुराने होने पर बेहतर काम करता है और कुछ का नया। ऐसे में ज्यादा परेशान होने की जरूरत नहीं है। आप आसानी से इसे मैनेज कर सकते हैं।

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