बरेली। उरी हमले और उसके जवाब में सर्जिकल स्ट्राइक के बाद भारत-पाकिस्तान के बीच बढ़ते तनाव के मद्देनजर दरगाह आला हजरत ने 24 नवंबर को होने वाले सालाना उर्स-ए-रजवी में हिस्सा लेने के लिए किसी भी पाकिस्तानी धर्मगुरु को नहीं बुलाने का फैसला किया है। पाकिस्तान के छह धर्म गुरुओं की ओर से दरगाह के उर्स में शामिल होने की गुजारिश आई है, पर दरगाह प्रबंधन ने फैसला किया है कि इनमें से किसी को भी यहां आने की इजाजत नहीं दी जाएगी। पिछले साल दरगाह प्रबंधन ने पाकिस्तान से 12 धर्म गुरुओं को उर्स में आने का न्योता दिया था, जिनमें से पांच यहां आए थे।
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दरगाह के प्रवक्ता
मुफ्ती मोहम्मद सलीम नूरी ने एर अंग्रेजी न्यूज चैनल को बताया कि उन्होंने
पाकिस्तानी धर्म गुरुओं के बहिष्कार का फैसला किया है, जिसके जरिए वो यह
संदेश देना चाहते हैं कि वे लोग भी आतंकवादी गतिविधियों के खिलाफ आवाज
बुलंद करें। दरगाह धर्म गुरुओं ने बताया कि लगभग एक दशक पहले पाकिस्तान से
इस दरगाह में आने वालों की संख्या हजारों में थी, पर दोनों देशों में बढ़ते
तनाव के चलते यह संख्या धीरे-धीरे कम होती चली गई। मुफ्ती ने कहा, जब भी
कोई आतंकवादी हमला होता है, भारत के मुसलमानों को उसकी वजह से परेशानी होती
है, क्योंकि उन्हें शक की निगाह से देखा जाता है। भारत और पाकिस्तान के
बीच तनाव के चलते, दोनों देशों के उन आम लोगों के लिए बड़ी समस्या खड़ी हो
जाती है जिनके रिश्तेदार सीमा के उस पार रहते हैं। आतंकवाद की निंदा करना
और शांति का संदेश फैलाना बहुत जरूरी है।
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मुफ्ती ने कहा कि
स्थानीय धर्म गुरुओं ने तय किया है कि वे उर्स में विदेशों से आने वाले सभी
धर्म गुरुओं से गुजारिश करेंगे कि वे पाकिस्तानी नेताओं से आतंकवाद की
निंदा करने को कहें और दोनों देशों के बीच दोस्ती का माहौल बनाने की कोशिश
करें। उन्होंने कहा, फ्रांस, दुबई, मॉरीशस, नीदरलैंड्स, साउथ अफ्रीका और
ओमान के धर्म गुरु यहां तीन दिवसीय उर्स में शामिल होने के लिए आने वाले
हैं, हम उनसे निवेदन करेंगे कि वे पाकिस्तानी नेताओं से आतंकवाद का विरोध
करने को कहें। उन्होंने कहा कि विदेशी धर्म गुरुओं का यह संदेश पाकिस्तान
तक उर्स की लाइव स्ट्रीमिंग के जरिए पहुंचेगा।
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