नरक चतुर्दशी जिसे लोग रूप चौदस भी कहते हैं। कार्तिक मास के कृृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को नरक चतुर्दशी, यम चतुर्दशी या फिर रूप चतुर्दशी कहते हैं। इस दिन महिलाएं अपना श्रृंगार कर, अपने रूप को निखारती हैं। इसके अलावा इस दिन यमराज को खुश करने के लिए यमराज की पूजा करते हैं और व्रत करने का विधान भी है।
स्वच्छता और सुंदरता से आती है मां लक्ष्मी
शास्त्रों के अनुसार देवी मां लक्ष्मी उसी घर में आती हैं, जहां स्वच्छता, सुंदरता और पवित्रता हो। नरक चतुर्दशी यानी छोटी दिवाली के दिन घर की सफाई जरूर करनी चाहिए। घर की सफाई के साथ—साथ अपने रूप को भी निखारना चाहिए। रूप निखारने के लिए शरीर पर उबटन लगा कर स्नान करना चाहिए।
14 दिए जलाने की परम्परा
इस दिन रात को तेल अथवा तिल के तेल के 14 दीपक जलाने की परम्परा है। कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी नरक चौदस, रूप चतुर्दशी अथवा छोटी दीवाली के रूप में मनाई जाती है।
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अकाल मृत्यु का नहीं होता भय
इस दिन सायं 4 बत्ती वाला मिट्टी का दीपक पूर्व दिशा में मुख करके घर के मुख्य द्वार पर रखें और...
दत्तो दीप: चतुर्दश्यो नरक प्रीतये मया। चतुर्वर्ति समायुक्त: सर्व पापा न्विमुक्तये।।
मंत्र
का जाप करें और नए पीले रंग के वस्त्र पहन कर यम का पूजन करें। जो व्यक्ति
इन बातों पर अमल करता है उसे नर्क की यातनाओं और अकाल मृत्यु का भय नहीं
रहता।
जानिए पूजा विधि
इस दिन शरीर पर तिल के तेल की मालिश करके
सूर्योदय से पहले स्नान करने का विधान है। स्नान के दौरान अपामार्ग (एक
प्रकार का पौधा) को शरीर पर स्पर्श करना चाहिए। अपामार्ग को निम्न मंत्र
पढ़कर मस्तक पर घुमाना चाहिए-
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सितालोष्ठसमायुक्तं सकण्टकदलान्वितम्।
हर पापमपामार्ग भ्राम्यमाण: पुन: पुन:।।
नहाने
के बाद साफ कपड़े पहनकर, तिलक लगाकर दक्षिण दिशा की ओर मुख करके निम्न
मंत्रों से प्रत्येक नाम से तिलयुक्त तीन-तीन जलांजलि देनी चाहिए। यह
यम-तर्पण कहलाता है। इससे वर्ष भर के पाप नष्ट हो जाते हैं-
ऊं यमाय
नम:, ऊं धर्मराजाय नम:, ऊं मृत्यवे नम:, ऊं अन्तकाय नम:, ऊं वैवस्वताय
नम:, ऊं कालाय नम:, ऊं सर्वभूतक्षयाय नम:, ऊं औदुम्बराय नम:, ऊं दध्राय
नम:, ऊं नीलाय नम:, ऊं परमेष्ठिने नम:, ऊं वृकोदराय नम:, ऊं चित्राय नम:,
ऊं चित्रगुप्ताय नम:।
इस प्रकार तर्पण कर्म सभी पुरुषों को करना
चाहिए, चाहे उनके माता-पिता गुजर चुके हों या जीवित हों। फिर देवताओं का
पूजन करके शाम के समय यमराज को दीपदान करने का विधान है। इसके अलावा नरक
चतुर्दशी पर भगवान श्रीकृष्ण की पूजा भी करनी चाहिए, क्योंकि इसी दिन
उन्होंने नरकासुर का वध किया था। इस दिन जो भी व्यक्ति विधिपूर्वक भगवान
श्रीकृष्ण का पूजन करता है, उसके मन के सारे पाप दूर हो जाते हैं और अंत
में उसे वैकुंठ में स्थान मिलता है।
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शुभ मुहूर्त
शाम 05:40 से 06:55 बजे तक (दीपदान के लिए)
नरक चतुर्दशी कथा
जब
भगवान विष्णु ने वामन अवतार लेकर दैत्यराज बलि से तीन पग धरती मांगकर
तीनों लोकों को नाप लिया तो राजा बलि ने उनसे प्रार्थना की- हे प्रभु! मैं
आपसे एक वरदान मांगना चाहता हूं। यदि आप मुझसे प्रसन्न हैं तो वर देकर मुझे
कृतार्थ कीजिए। तब भगवान वामन ने पूछा- क्या वरदान मांगना चाहते हो, राजन?
दैत्यराज बलि बोले- प्रभु! आपने कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी से लेकर अमावस्या
की अवधि में मेरी संपूर्ण पृथ्वी नाप ली है, इसलिए जो व्यक्ति मेरे राज्य
में चतुर्दशी के दिन यमराज के लिए दीपदान करें, उसे यम यातना नहीं होनी
चाहिए और जो व्यक्ति इन तीन दिनों में दीपावली का पर्व मनाए, उनके घर को
लक्ष्मीजी कभी न छोड़ें।
राजा बलि की प्रार्थना सुनकर भगवान वामन बोले-
राजन! मेरा वरदान है कि जो चतुर्दशी के दिन नरक के स्वामी यमराज को दीपदान
करेंगे, उनके पितर कभी नरक में नहीं रहेंगे और जो व्यक्ति इन तीन दिनों में
दीपावली का उत्सव मनाएंगे, उन्हें छोड़कर मेरी प्रिय लक्ष्मी अन्यत्र न
जाएंगी। भगवान वामन द्वारा राजा बलि को दिए इस वरदान के बाद से ही नरक
चतुर्दशी के दिन यमराज के निमित्त व्रत, पूजन और दीपदान का प्रचलन आरंभ
हुआ, जो आज तक चला आ रहा है।
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