भारत में महिलाओं द्वारा करवा चौथ का व्रत रखने की परंपरा बहुत पुरानी है। पौराणिक कथाओं के मुताबिक एक समय जब नीलगिरी पर्वत पर पांडव पुत्र अर्जुन तपस्या करने गए,तब किसी कारणवश उन्हें वहीं रूकना पड गया। उन्हीं दिनों पांडवों पर गहरा संकट आया। चिंतित व शोकाकुल द्रौपदी ने भगवान श्रीकृष्ण का ध्यान किया तथा कृष्ण के दर्शन होने पर पांडवों के कष्टों के निवारण हेतु उपाय पूछा। तब कृष्ण ने कहा-द्रौपदी! मैं तुम्हारी चिंता एवं संकट का कारण जानता हूं। उसके लिए तुम्हें एक उपाय करना होगा। जल्दी ही कार्तिक माह की कृष्ण चतुर्थी आने वाली है, उस दिन तुम पूरे मन से व्रत रखना। भगवान शिव, गणेश एवं पार्वती की उपासना करना, सारे कष्ट टल जाएंगे, सारा कुछ ठीक होगा। द्रोपदी ने कृष्ण की आज्ञा का पालन कर करवा चौथ का व्रत किया। तब उसे शीघ्र ही अपने पति के दर्शन हुए और उसकी सारी चिंताएं दूर हो गईं। जब मां पार्वती द्वारा भगवान शिव से पति की दीर्घायु एवं सुख-संपत्ति की कामना की विधि पूछी तब शिव ने करवा चौथ व्रत" रखने की कथा सुनाई थी।
क्यों देखते है छलनी से चांद-----
इस व्रत की कथा के अनुसार, एक बार किसी बहन को उसके भाइयों ने स्त्रेहवश भोजन कराने के लिए छल से चांद की बजाय छलनी की ओट में दीपक दिखाकर भोजन करवा दिया। इस तरह उसका व्रत भंग हो गया। इसके पश्चात उसने पूरे साल चतुर्थी का व्रत किया और जब पुन: करवा चौथ आई तो उसने विधिपूर्वक व्रत किया और उसे सौभाग्य की प्राप्त हुई। उस करवा चौथ पर उसने हाथ में छलनी लेकर चांद के दर्शन किए।
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छलनी का एक रहस्य यह भी है कि कोई छल से उनका व्रत भंग न कर दे, इसलिए छलनी
के जरिए बहुत बारीकी से चंद्रमा को देखने के बाद ही व्रत खोला जाता है।
करवा चौथ का व्रत करने के लिए इस दिन व्रत की कथा सुननी चाहिए। उस समय एक
चौकी पर जल का लोटा, करवे में गेहूं और उसके ढक्कन में चीनी-रूपए आदि रखने
चाहिए।
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पूजन
में रोली, चावल, गुड़ आदि सामग्री भी रखें। फिर लोटे व करवे पर स्वस्तिक
बनाएं। दोनों पर तेरह बिंदियां लगाएं। गेहूं के तेरह दाने हाथ में लेकर कथा
सुनें। इसके बाद अपनी सासू मां के चरण स्पर्श कर उनसे आशीर्वाद लें और
भेंट दें। चंद्रमा उदय होने के बाद उसी लोटे के जल तथा गेहूं के तेरह दाने
लेकर अर्घ्य दें। रोली, चावल और गुड़ चढ़ाएं। सभी रस्में पूरी होने के बाद
भोजन ग्रहण करें।
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