नभ-थल के बाद INS अरिहंत जल से परमाणु हमले में होगा सक्षम

www.khaskhabar.com | Published : मंगलवार, 18 अक्टूबर 2016, 11:11 AM (IST)

नई दिल्ली। भारत दुश्मनों के खिलाफ जवाबी परमाणु हमले करने की क्षमता में एक नायाब उपलब्धि हासिल करने वाला है। यह उपलब्धि है- न्यूक्लियर ट्रायड। अर्थात अरिहंत जमीन, हवा या समुद्र, कहीं से भी परमाणु मिसाइलें दागने में सक्षम होगा। भारत के पास जल्द ही हवा में एयरक्राफ्ट से, जमीन से इंटरकॉन्टिनेंटल बलिस्टिक मिसाइल्स के जरिए और पानी के नीचे सबमरीन से परमाणु मिसाइलें दागने की क्षमता होगी। भारत के पास जमीन से लंबी दूरी के लक्ष्यों को निशाना बनाने वाली अग्नि मिसाइलें काफी पहले से मौजूद थीं। इसके अलावा, न्यूक्लियर वॉरहेड ढो सकने में सक्षम फाइटर एयरक्राफ्ट्स भी थे। कमी केवल समुद्र से परमाणु हमले के मोर्चे पर थी।
सूत्रों ने सोमवार को बताया कि भारत की पहली स्वदेश निर्मित न्यूक्लियर पनडुब्बी आईएनएस अरिहंत को इस साल अगस्त में नेवी की सेवा में शामिल कर लिया गया। 83 मेगावॉट क्षमता वाले लाइट वॉटर रिएक्टर से चलने वाली इस पनडुब्बी का ट्रायल दिसंबर 2014 से ही चल रहा था। आईएनएस अरिहंत में 750 किमी और 3500 किमी क्षमता वाली मिसाइलें हैं। अमेरिका, रूस और चीन के पास 5000 किमी से ज्यादा क्षमता वाली एसएलबीएम (सबमरीन से लॉन्च की जा सकने वाली बलिस्टिक मिसाइलों) की तुलना में ये कमतर हैं, लेकिन न्यूक्लियर ट्रायड एक ऐसी क्षमता थी, जिसे हासिल करना भारत के लिए बेहद अहम था।

भारत की नीति पहले न्यूक्लियर हमला न करने की है। ऐसे में न्यूक्लियर ट्रायड भारत की जवाबी कार्रवाई करने की क्षमता को बेहतर बनाएगा। दरअसल, पहले किए गए परमाणु हमले में शत्रु आपकी न्यूक्लियर मिसाइलों और परमाणु हमला करने में सक्षम एयरक्राफ्ट्स को निशाना बना सकता है। ऐसे में पानी के नीचे महीनों तक बिना किसी की नजर में आए परमाणु हमले की क्षमता वाली पनडुब्बी से जवाबी न्यूक्लियर स्ट्राइक में रोल बेहद अहम और प्रभावशाली हो जाता है।
सूत्रों ने बताया कि 6000 टन वजन वाला अरिहंत न्यूक्लियर बलिस्टिक मिसाइलों के साथ पानी के नीचे गश्त पर निकलने के लिए फिलहाल पूरी तरह से तैयार नहीं है। रक्षा मंत्रालय और नेवी, दोनों ने ही इस मामले पर कुछ कहने से इनकार किया है। उनके मुताबिक, यह एक सामरिक प्रॉजेक्ट है, जिसका नियंत्रण सीधे प्रधानमंत्री कार्यालय के पास है। सूत्रों का कहना है कि इसमें सबमरीन से लॉन्च की जा सकने वाली बलिस्टिक मिसाइलों के सिस्टम को लगाने में थोड़ा वक्त लगेगा। इन मिसाइलों को पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम के नाम पर कोडनेम ‘के’ दिया गया है। इनमें दो तरह की मिसाइलें लगेंगी। पहली के-15 एसएलबीएम, जिसकी क्षमता 750 किमी है, जबकि दूसरी के-4 जो 3500 किमी दूर तक के लक्ष्य को निशाना बनाने में सक्षम है। अरिहंत को 750 किलोमीटर रेंज वाली के15 और 3,500 किलोमीटर रेंज वाली 4 बलस्टिक मिसाइलों से लैस किया जाएगा।
और भी प्रॉजेक्ट पाइपलाइन में

भारत अपने खुफिया प्रॉजेक्ट एटीवी (अडवांस्ड टेक्नॉलजी वेसेल) प्रोग्राम के तहत ऐसी तीन परमाणु क्षमता वाली सबमरीन बना रहा है, जिसमें न्यूक्लियर मिसाइलें दागने की क्षमता हो। यह प्रॉजेक्ट दशकों पहले शुरू हुआ था। आईएनएस अरिहंत के बाद अब आईएनएस अरिधमन का काम भी करीब-करीब पूरा हो चुका है। इसे 2018 तक नेवी को सौंपे जाने की उम्मीद है। अभी अरिहंत क्लास की दो और पनडुब्बियों पर विशाखापट्टनम के शिप बिल्डिंग सेंटर (एसबीसी) में काम किया जा रहा है। ये पहली पनडुब्बी से ज्यादा बड़ी और एडवांस्ड होंगी।
टेस्ट में खरा उतरा अरिहंत

आईएनएस अरिहंत को बहुत सारी सी डाइविंग (समुद्र में गोता लगाना) ड्रिल्स और हथियारों के लॉन्च से जुड़े टेस्ट के बाद नेवी में शामिल किया गया है। अरिहंत नौसेना में शामिल की जाने वाली पांच न्यूक्लियर मिसाइल पनडुब्बी में से पहली है। इसे विशाखापट्टनम में बनाया गया है और वहीं इसका डीप सी डाइविंग टेस्ट परीक्षण भी किया गया। पिछले साल एक अक्टूबर को आया रूस का डाइविंग सपोर्ट शिप- आरएफएस एप्रन डीप सी डाइव और लॉन्च से जुड़े टेस्ट में अरिहंत के साथ था।
चीन और पाक के नजरिए से अहम
भारत के पड़ोसी पाकिस्तानी और चीन, दोनों ही परमाणु आयुध क्षमता बढ़ाने में लगे हुए हैं। वहीं, हिंद महासागर क्षेत्र में चीनी न्यूक्लियर सबमरीन की बढ़ती मौजूदगी भी भारत के लिए सालों से चिंता का विषय बनी हुई है। ऐसे में ये प्रॉजेक्ट भारत की सामरिक ताकत को बढ़ाने की दिशा में बेहद कारगर साबित होगा।