अंग्रेजों का सिर काटकर देवी को समर्पित करते थे बंधुसिंह

www.khaskhabar.com | Published : सोमवार, 10 अक्टूबर 2016, 12:23 PM (IST)

तरकुलहा देवी का मंदिर गोरखपुर से 20 किलो मीटर की दूरी पर तथा चौरी-चौरा के पास स्थित हैं। तरकुलहा देवी मंदिर हिन्दू भक्तों का पूर्वी उत्तर प्रदेश का प्रमुख धार्मिक स्थल हैं।1857 के प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम से पहले इस इलाके में घनघोर जंगल हुआ करता था। इस जंगल में डुमरी रियासत के बाबू बंधू सिंह थे। यहां से गुर्रा नदी होकर गुजरती थी। नदी के तट पर तरकुल (ताड़) के पेड़ के नीचे पिंडियां स्थापित कर वह देवी की उपासना किया करते थे। तरकुलहा देवी बाबू बंधू सिंह की इष्ट देवी थी।

जब देश गुलाम था तो अँगरेज़ देशवासियों के ऊपर घनघोर जुल्म ढाते थे।देशवासियों पर अंग्रेजों के जुल्म की कहानियाँ सुन सुनकर बचपन में बन्धु सिंह का खून खौल उठता था। जब बंधू सिंह बड़े हुए तो उनके दिल में भी अंग्रेजो के खिलाफ आग जलने लगी। जब भी कोई अंग्रेज उस जंगल से गुजरता, बंधू सिंह उसको मार कर उसका सर काटकर देवी मां के चरणों में समर्पित कर देते ।पहले तो अंग्रेज यही समझते रहे कि उनके सिपाही जंगल में जाकर लापता हो जा रहे हैं, लेकिन जब अंग्रेजों को जानकारी हुई तो अंग्रेजों ने उनकी तलाश में जंगल का कोना-कोना छान मारा ।लेकिन बंधू सिंह को पकड़ नहीं पाए। एक मुखबिर के चलते बंधू सिंह अंग्रेजों के हत्थे चढ़ गये।

अंग्रेजों ने उन्हें गिरफ्तार कर अदालत में पेश किया जहां उन्हें फांसी की सजा सुनाई गयी। उस समय फांसी सरेआम चौराहे पर दे दी जाती थी।12 अगस्त 1857 को गोरखपुर में अली नगर चौराहा पर सार्वजनिक रूप से बंधू सिंह को फांसी पर लटकाया गया। अंग्रेजों ने उन्हें 6 बार फांसी पर चढ़ाने की कोशिश की लेकिन वे सफल नहीं हुए। इसके बाद बंधू सिंह ने स्वयं देवी माँ से अपनाने के लिए कहा और फिर सातवीं बार में अंग्रेज उन्हें फांसी पर चढ़ाने में सफल हो गए। अमर शहीद बंधू सिंह को सम्मानित करने के लिए यहाँ एक स्मारक बनाया गया हैं।

बंधू सिंह ने अंग्रेजो के सिर चढ़ा के जो बलि की परम्परा शुरू की थी वो आज भी यहाँ होती है। अब यहाँ पर बकरे कि बलि चढ़ाई जाती है उसके बाद बकरे के मांस को मिट्टी के बरतनों में पका कर प्रसाद के रूप में बाटा जाता हैं साथ में बाटी भी दी जाती हैं।इकलौता मंदिर है जहाँ प्रसाद के रूप में मटन दिया जाता हैं। हांलाकि इस पर अब काफी विवाद है और इसे बंद कराने के लिए कोर्ट में केस भी चल रहा हैं। तरकुलहा देवी मंदिर में साल में एक बार मेला भरा जाता हैं जिसकी शुरुआत चैत मास की रामनवमी से होती हैं यह मेला एक महीने चलता हैं। यहाँ पर मन्नत पूरी होने पर घंटी बाँधने का भी रिवाज़ हैं, यहाँ आपको पूरे मंदिर परिसर में जगह जगह घंटिया बंधी दिख जायेगी। यहाँ पर सोमवार और शुक्रवार के दिन काफी भीड़ रहती हैं।