इससे पूर्व 2007 में यहां बसपा ने ढाई दर्जन से भी ज्यादा सीटें हासिल की थीं और उप्र में पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई थी। इस बार भी बसपा सुप्रीमो मायावती ने उप्र में ज्यादातर सीटें मुस्लिम समुदाय को दी हैं। मायावती ने हमेशा यह बात दोहराई है कि मुसलमानों के लिए सबसे भरोसेमंद पार्टी बसपा ही है।
रालोद के लिए भी यह चरण अहम है, क्योंकि उसने कांग्रेस के गठबंधन के बाद 2012 के चुनाव में जो कुल नौ सीटें जीती हैं, वे इसी क्षेत्र में हैं।
बीबीसी के पूर्व पत्रकार व वर्तमान में एनबीएसबी (नार्थ ब्लॉक-साउथ ब्लॉक वेबसाइट) के संपादक दुर्गेश उपाध्याय ने आईएएनएस कहा कि बहुत मुमकिन है कि इस बार विधानसभा चुनाव में कैराना पलायन, लव जेहाद, गोवध व मुजफ्फरनगर दंगे का असर दिखाई दे। इन मुद्दों को लेकर ही पश्चिमी उप्र की सियासत हमेशा घूमती रही है। इन मुद्दों को एक बार फिर से हवा देने की कोशिश की जा सकती है।
उन्होंने कहा, "पश्चिमी उप्र में गन्ना किसानों के बकाए का मुद्दा भी अहम साबित होगा। किसानों के मन में नोटबंदी को लेकर भी काफी भ्रम की स्थिति है। नोटबंदी से समाज के हर तबके को परेशानी हुई है, लिहाजा मतदान के दौरान इसका असर भी दिख सकता है।"
आईएएनएस
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