भीलवाड़ा। एक तरफ तो सरकार दिव्यांगों को अच्छी जिंदगी जीने के लिए प्रोत्साहित कर रही है, वहीं सरकारी कारिंदे दिव्यागों से नौकरी ही छीन रहे हैं। ऐसा ही मामला उस समय सामने आया, जब तीन दिव्यांग अपनी-अपनी नौकरी पाने के लिए धरने पर बैठे गए। ये विकलांग दो बार नौकरी से निकाल देने के बाद अपनी लड़ाई लड़ रहे हैं, लेकिन कोर्ट के आदेश के बाद भी इन्हें नौकरी नहीं दी गई।
दिव्यांग जगदीश चंद्र लखारा ने कहा कि हम तीन दिव्यांग भैरूंलाल, लीलाधर और उसे 1997 में महात्मा गांधी चिकित्सालय में पर्ची वितरक पद पर नियुक्ति दी गई थी। उसके बाद करीब 13 साल तक नौकरी की और बाद में सन 2000 में हमें नौकरी से हटा दिया। उसके बाद श्रम न्यायालय में मुकदमा दायर किया। जिसमें 2005 में न्यायाधीश ने हमारे पक्ष में फैसला देते हुए नौकरी देने के साथ तनख्वाह का 25 प्रतिशत देने को कहा। उसके बाद हमें फिर नौकरी पर ले लिया, लेकिन 2 साल बाद ही फिर से बाहर कर दिया। इस पर हमने निशक्तजन न्यायालय में मामला दर्ज करवाया। वहां से हमें पुन: नौकरी देने का फैसला आया, लेकिन आज तक नौकरी पर नहीं रखा गया है। इस कारण हमारे सामने परिवार पालना भी भारी पड़ रहा है। हम तीनों दिव्यांग होने के कारण सरकारी कार्यालय के चक्कर भी नहीं लगा सकते। इस कारण धरना शुरू किया है। लखारा ने यह भी कहा कि यदि हमारी मांगें पूरी नहीं हुईं तो भूख हड़ताल की जाएगी।
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