कुल्लू। अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले रेहड़ी-फड़ी व फेरीवाले व्यवसायियों को अब सहुलियत मिलेंगी ताकि वह अपना व्यवसाय सही ढंग से कर सकें। जिसके लिये हिमाचल प्रदेश में सर्वे का काम लगभग पूरा हो चुका है ताकि इस तरह के व्यवसाय करने वालों की पहचान हो सके और उसके मुताबिक स्ट्रीट वेंडर जोन का निर्माण किया जा सके। इस संदर्भ में जानकारी देते हुये एनयूएलएम के प्रबंधक संदीप मिन्हास ने बताया कि स्ट्रीट वेंडर जोन बनाने के लिये प्रथम चरण में हिमाचल प्रदेश 10 शहरों को चुना गया है। जिनमें कुल्लू, मंडी, बिलासपुर, धर्मशाला, चंबा, हमीरपुर, ऊना, नाहन, सोलन व शिमला शहरों को शामिल किया गया है। उन्होंने बताया कि इस योजना के तहत स्ट्रीट वेंडर को तीन वर्गों में बांटा गया है। जिसके तहत स्थाई,घुमंतू व सड़क के किनारे काम करने वाले शामिल हैं। स्थाई तौर पर रेहड़ी-फड़ी लगाने वाले को लाल रंग का पहचान पत्र दिया जायेगा जबकि घुमंतू को पीले रंग और सड़क के किनारे काम करने वालों को सफेद रंग का पहचान पत्र दिया जायेगा। [@ फलों से मिठाईयां बनाने के गुर सीख रहीं महिलाए्ं] [@ अपने राज्य / शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे]
मिन्हास के मुताबिक आज कल इनके बायोमिट्रिक सर्वे का काम चला हुआ है जिसमें इनके हाथ के निशान, आधार कार्ड व बैंक की पासबुक पहचान के तौर पर लिये जा रहे हैं। ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि स्ट्रीट वेंडर जोन का निर्माण होने के बाद दुकान लेने वाला वही व्यक्ति है जिसके पहचान पत्र व अन्य पहचान बायोमिट्रिक सर्वे के दौरान ली गई है। इससे नगर परिषद् के पास उनका एक डाटा बन जायेगा और उनकी पहचान व निरीक्षण करने में आसानी हो जायेगी। हिमाचल प्रदेश में सर्वे का काम हरियाणा की स्वंयसेवी संस्था हरियाणा नवयुवक कला संगम को दिया गया है। उन्होंने बताया कि केंद्र सरकार द्वारा पास किये गये स्ट्रीट वेंडिंग बिल 2012 में यह भी प्रावधान है कि अगर किसी स्ट्रीट वेंडर की मौत हो जाती है तो उसके परिजन उस दुकान को चला सकते हैं। स्ट्रीट वेंडर को उनके काम के आधार के मुताबिक दुकानें दी जायेंगी ताकि उनको अपना काम करने में किसी प्रकार की दिक्कत का सामना न करना पड़े।
एनयूएलएम के प्रबंधक संदीप मिन्हास ने बताया कि स्ट्रीट वेंडर को कौशल विकास प्रशिक्षण से भी जोड़ा जायेगा। जिसके तहत उनको उनके काम के अनुरूप प्रशिक्षण दिया जायेगा ताकि वह अपने काम में और ज्यादा दक्ष हो सकें। उन्होंने बताया कि जरूरत पड़ने पर उनके लिये गोदाम भी बनाये जायेंगे ताकि वह अपना सामान इधर-उधर रखने के बजाय वहां पर रख सकें। यही नहीं बल्कि स्ट्रीट वेंडर को सामाजिक सुरक्षा योजनाओं से भी जोड़ा जायेगा ताकि वह सरकार द्वारा चलाई जा रही योजनाओं का भी लाभ उठा सकें। संदीप मिन्हास ने बताया कि स्ट्रीट वेंडर को अपना काम काज चलाने के लिये बैंको से सस्ती दर पर ऋण भी दिलाये जायेंगे। जिससे वह अपना व्यवसाय बड़ा सकेंगे। इसके साथ ही स्ट्रीट वेंडर जोन में पार्किंग व कचरा प्रबंधन का भी इंतजाम किया जायेगा। इस योजना को मुर्त रूप देने के लिये नगर परिषद् के कार्यकारी अधिकारी की अध्यक्षता में टाऊन वैंडिंग कमेटी बनाई गई है, जिसमें 40 फीसदी स्ट्रीट वेंडर शामिल हैं और विभिन्न विभागों के अधिकारी भी शामिल हैं।
संदीप मिन्हास ने बताया कि अभी तक स्ट्रीट वेंडरों की दुकानों को शहरी अतिक्रमण से मुक्त कराने या सौंदर्यीकरण के नाम पर उजाड़ दिया जाता है। उनकी दुकानों और सामान को काफी क्षति पहुंचाई जाती है लेकिन लोकसभा से प्रोटेक्शन ऑफ लाइवलीहुड एंड रेग्युलेशन ऑफ स्ट्रीट वेंडिंग कानून-2014 पारित किये जाने से इस तरह के कृत्यों पर अंकुश लगेगा। मिन्हास के मुताबिक बिल में स्ट्रीट वेंडरों की सामाजिक आर्थिक दशा सुधारने की दिशा में भी महत्वपूर्ण प्रावधान किए गए हैं। जबकि पिछले दिनों संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम और टाटा सामाजिक विज्ञान संस्थान द्वारा 15 शहरों में किए गए एक अन्य अध्ययन से यह बात सामने आई कि स्ट्रीट वेंडरों को बैंक कर्ज देने से इसलिए मना कर देते थे कि वे वैधानिक दायरे में नहीं आते हैं। बैंकों से कर्ज नहीं मिलने के कारण वे सूदखोरों और महाजनों से भारी ब्याज दर पर कर्ज प्राप्त करते हैं, वर्तमान कानून उन्हें वैधानिक दर्जा देता है जिससे उन्हें संस्थागत वित्तीय सेवाओं को हासिल करने में काफी सहूलियत होगी। वे कम ब्याज दरों पर सरकारी स्कीमों के जरिये बैंकों से कर्ज भी प्राप्त कर सकेंगे। जिससे वह अपने व्यवसाय को और ज्यादा बढा सकते हैं।
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