धौलपुर । जिले में श्राद पक्ष के शुरू होते ही लोगों का सुबह से ही तीर्थराज मचकुण्ड सहित नदियों पर पितरों को तर्पण किया। पंडित और आचार्यों ने नदी के घाटों पर मंत्रोचारण करा कर अन्न,तिल,चावल,जौं आदि से तर्पण करा कर अपने पूर्वजो को याद कर परिवार के लिए हरा-भरा होने की मनौती मांगी।
शास्त्रों के अनुसार पितरो को देवताओ से भी उच्च कोटि का स्थान दिया है इस कारण पितरो की अतृप्त इच्छाओं की पूर्ति के लिए ही श्राद्ध किया जाता है और श्रद्धा पूर्वक पितरो का श्राद्ध करे जिससे वह संतुष्ट होकर परिवार को सुख सम्रद्धि दे.श्राद्ध पक्ष में जिस तिथि को अपने पूर्वजो का देहांत हुआ है उस तिथि को उनका आव्हान कर श्राद्ध करना चाहिए और दान पुण्य कर कौआ,गाय,कुत्ता एवं पतंगा के भाग को निकाल कर ब्राहमणों को भोजन कराने के बाद उन्हें भी भोजन दे.इस मौके पर शहर के सैकड़ो लोगो ने तीर्थराज मचकुंड पहुंच कर पितृ पक्ष में अपने पितरो को तर्पण कर पूजा-अर्चना दान-पुण्य किया.वही माना जाता है कि जब राजा कर्ण संसार को छोडक़र गया था तब उसे स्वर्ग में जाकर खाने के लिए सोना दिया था और स्वर्ग में कहा गया कि आपने पृथ्वी पर सिर्फ सोने का दान किया है लिहाजा आपको खाने में सोना ही दिया जाएगा लेकिन आपके पुण्य इतने है कि आप जो चाहेंगे वही आपको दिया जाएगा। उसके बाद राजा कर्ण ने याचना कि कि मुझे मात्र 15 दिन के लिए पृथ्वी पर भेजा जाए राजा की बात मानी गई। जिसको पुन: धरती पर भेज दिया उसके बाद राजा कर्ण ने 15 दिन तक संसार की हर वस्तु का जी भरकर दान किया उसके बाद राजा के तर्पण पूर्ण हुए तभी आर्य संस्कृति में कारणागतों को प्रमुख रूप से मान्यता दी जाने लगी है।
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