चंडीगढ़। हरियाणा में प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना को अपनाने और इसको लोन लेने वालों पर बाध्य करने के खिलाफ दाखिल याचिका पर पंजाब-हरियाणा हाई कोर्ट ने हरियाणा, केंद्र सरकार, रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया और बीमा कंपनियों को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है।
मामले में हिसार निवासी सुशीला देवी ने याचिका दाखिल करते हुए कहा कि केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय ने प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के नाम से स्कीम आरंभ की थी। इस स्कीम को हरियाणा सरकार ने अपना लिया और लोन लेने वाले किसानों के लिए इसे अनिवार्य रूप से लागू कर दिया गया। इस स्कीम के तहत खरीफ की फसल के लिए 2 फीसद और रबी की फसल के लिए 1.5 फीसद बीमा किश्त रखी गई।
वार्षिक फसल के लिए इसे 5 फीसद रखा गया। याची के वकील हर्षवर्धन सेहरावत ने दलील देते हुए कहा कि योजना को स्वीकार करना अनिवार्य नहीं है, लेकिन हरियाणा सरकार इसे अनिवार्य रूप से लागू कर रही है। हरियाणा सरकार ने इसके लिए विधानसभा की मंजूरी तक नहीं ली। ऐसे में बीमा कंपनियां मुनाफा कमा रही हैं, जबकि किसानोंं की जेब काटी जा रही है। याची पक्ष की ओर से आइआरडीए के नियमों का हवाला देते हुए कहा गया कि बीमा के लिए बीमा देने वाले और लेने वाले के बीच लिखित एग्रीमेंट जरूरी है। मगर इस मामले में ऐसा नहीं किया जा रहा है।
इसके साथ ही कोर्ट को बताया गया कि बीमा कंपनियों ने किसानों के खाते से 63 करोड़ रुपये अतिरिक्त काटे हैं। इसके बाद जस्टिस राजेश बिंदल पर आधारित खंडपीठ ने हरियाणा, केंद्र सरकार और अन्य प्रतिवादियों को नोटिस जारी कर 30 जनवरी तक जवाब मांगा है।
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