बीकानेर। किसी संसारी व्यक्ति का संन्यास असल में पुर्नजन्म होता है, जिसमें व्यक्ति अपने पूर्वजन्म यानी वानप्रस्थ को देख-सुन सकता है। योगी प्रहलादनाथ महाराज ने संसार में वानप्रस्थ बाबूलाल लखारा के रूप में आदर्श शिक्षक बन कर गुजारा और बाद में संन्यास ग्रहण कर जीवन से विरक्त हो गए। उन्होंने अपने नाम के साथ सब कुछ छोड़ दिया और जन-जन की सेवा का व्रत ले लिया।
उक्त उद्गार शिविरा के पूर्व संपादक वरिष्ठ कवि भवानीशंकर व्यास विनोद ने भीनासर स्थित नोबिना शिक्षा संस्थान माध्यमिक विद्यालय के परिसर में कवि-कहानीकार जगदीश प्रसाद शर्मा उज्जवल की जीवनी परक पुस्तक योगी प्रहलादनाथ महाराज के लोकार्पण समारोह कार्यक्रम में कहा कि परमयोगी प्रहलादनाथ जैसे दुर्लभ संत-महात्मा भी संसार में हैं, जो निमित्त बन कर अपनी प्रशंसा सुनना पाप समझते हैं। यह गहरे मर्म की बात है कि निमित्त बन कर अभिनंदन कराने से पुण्य क्षीण होते हैं। उन्होंने कहा कि योगीराज ने समाज में पहले भी असाधारण काम किया और अब भी वे असाधारण काम कर रहे हैं।
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