गांव को कैशलेस बनाने की पहल
स्वातंत्र्यवीर सावरकर स्मारक नाम की संस्था ने की है, जो लोगों को कार्ड
इस्तेमाल करने की ट्रेनिंग भी दे रहा है। धसई गांव में पहले सिर्फ दो बैंक
थे, ठाणे डिस्ट्रिक्ट सेंट्रल कॉपरेटिव बैंक और विजया बैंक।
नोटबंदी के बाद धसई और आसपास के गांवों में भी अर्थव्यवस्था लडखडाई लेकिन
प्लास्टिक पैसों के बूते गांव फौरन उठ खडा हुआ। देश में सबसे पहले डिजिटल
हुए गांवों में गुजरात का अकोदरा गांव है जो पूरी तरह डिजिटल हुआ था, उसके
बाद नोटबंदी के दौरान शायद ये तमगा धसई को मिला है।
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