नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर साफ-साफ कहा है कि सरकार की आलोचना
करने पर किसी के खिलाफ राजद्रोह या मानहानि के मामले नहीं थोपे जा सकते।
इसी के साथ कोर्ट ने पुलिस और ट्रायल जजों सहित सभी अथॉरिटीज को निर्देश
दिया कि वे इस मामले में उसकी संविधान पीठ के उस फैसले का पालन करें जिसमें
कहा गया था कि सिर्फ हिंसा भडकाने और समाज में गडबडी पैदा करने के मामले
में ही राजद्रोह का मामला लगाया जा सकता है।
जस्टिस दीपक मिश्रा और जस्टिस यूयू ललित की पीठ ने सोमवार को कहा,
यदि कोई सरकार की आलोचना करने के लिए बयान दे रहा है तो वह राजद्रोह या
मानहानि के कानून के तहत अपराध नहीं करता। हमने स्पष्ट किया है कि धारा
124-ए को लागू करने के लिए सुप्रीम कोर्ट के पहले के एक फैसले के अनुसार
कुछ दिशानिर्देशों का पालन करना होगा।
एनजीओ कॉमन कॉज की ओर से वकील प्रशांत भूषण ने इस मामले को उठाया
था। उन्होंने कोर्ट में कहा था कि राजद्रोह एक गंभीर अपराध है और असहमति को
दबाने के लिए इससे संबंधित कानून का काफी दुरूपयोग किया जा रहा है।
उन्होंने इस संबंध में कुछ उदाहरण दिये जिनमें कुडनकुलम परमाणु ऊर्जा
परियोजना के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे आंदोलनकारियों, कार्टूनिस्ट असीम
त्रिवेदी और कुछ अन्य लोगों पर राजद्रोह के मामले शामिल थे।
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