आजमगढ़। करोड़ों रूपये की लागत से बना आजमगढ़ का सुपर फेसिलिटी हास्पिटल एवं मेडिकल कालेज पूरी तरह से बदहाल है। कहने को तो यह समाजवादी सरकार का ड्रीम प्रोजेक्ट रहा है। इसके शिलान्यास व लोकार्पण के मौके पर यही दावे किये गये थे कि इस सुपर फेसिलिटी हास्पिटल से आजमगढ़ ही नहीं वरन आस-पास के जिलों की दिक्कतें दूर हो जायेंगी और किसी मरीज को लखनऊ के पीजीआई नहीं जाना पड़ेगा। सच तो यह है कि उसी तरह से बनाया भी गया और मशीनें भी वैसी ही अत्याधुनिक मुहैया करायी गयी मगर विशेषज्ञों की तैनाती सुनिश्चित नहीं की जा सकी। ऐसी स्थिति में यह हास्पिटल बेमतलब साबित होकर रह गया है।
आजमगढ़ जिला मुख्यालय से करीब 20 किलोमीटर दूर चक्रपानपुर जैसे वीराने में 114 एकड़ के विशाल भू-भाग में बना यह सुपर फिसेलिटी हास्पिटल एवं मेडिकल कालेज न तो किसी राष्ट्रीय राजमार्ग पर है और न ही लिंक मार्ग पर होने की वजह से आवागमन के समुचित संसाधन उपलब्ध नहीं हैं। हाल यह है कि शाम के 6 बजे के बाद यहां आना-जाना काफी मुश्किल हो जाता है। बावजूद इसके करोड़ों की लागत से सपा के तत्कालीन राष्ट्रीय महासचिव अमर सिंह के प्रयास से उनके गृह जनपद में मुलायम सिंह यादव के मुख्य मंत्रित्वकाल में साल 2006 में इसका लोकार्पण हुआ। आलीशान बिल्डिंगें बनायी गयी और मंहगी अत्याधुनिक मशीनें भी लगायी गयी। दिक्कत बस यह हो गयी कि बेवजह बदनाम आजमगढ़ जिले के वीराने में स्थित इस सुपर हास्पिटल एवं मेडिकल कालेज में सेवायें देने के लिए न तो अच्छे डाक्टर्स व प्रोफेसर्स आये और न ही मशीनों का संचालन करने वाले तकनीकी विशेषज्ञ ही। इन स्थितियों के बीच यह हास्पिटल व मेडिकल कालेज पूरी तरह से अस्तित्वहीन होकर रह गया है।
हाल यह है कि तकनीकी विशेषज्ञों के अभाव में एमआरआई, एक्स-रे, सिटी स्कैन, अल्ट्रासोनोग्राफी जैसी मामूली जांच भी यहां संभव नहीं हो पा रही है। साथ ही सारी व्यवस्थायें होने के बावजूद पैथालॉजी का भी संचालन नहीं हो पा रहा। यहां के प्राचार्य प्रो. डा. गणेश कुमार रेडियोलाजिस्ट तो हैं मगर वह समय नहीं दे पाते। साथ ही रिपोर्ट निकालने वालों का भी अभाव है। विशेषज्ञ चिकित्सकों के न आने की वजह से शहर में निजी प्रैक्टिस करने वाले कुछ एमबीबीएस डाक्टरों को संविदा पर यहां तैनाती देकर किसी तरह से ओपीडी चलायी जा रही है। ओपीडी करने वाले यह चिकित्सक शहर स्थित अपने डिस्पेंसरी या हास्पिटल पर मरीजों को आने के लिए प्रेरित करते हैं। इस वीराने में आने की दिक्कतें झेलने वाले मरीज भी शहर में ही उसी डाक्टर को दिखा लेना बेहतर समझते हैं। तकनीकी विशेषज्ञों की अनुपलब्धता बताकर जांच जहां बाहर की लिखी जाती है, वहीं दवाइयों की उपलब्धता के बावजूद कमीशन के चक्कर में ज्यादातर बाहर की ही दवाइयां लिख दी जाती हैं। दिक्कत यह भी है कि ओपीडी करने वाले डॉक्टर रेगुलर नहीं हैं। किसी भी डाक्टर की दो दिन से अधिक ड्यूटी नहीं होती है। ऐसे में भी मरीज शहर में उनकी प्रतिदिन उपलब्धता होने के कारण वहीं जाना बेहतर समझता है।
यहां की बदहाली का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि गंभीर मरीजों को जिला अस्पताल के लिए रेफर किया जाता है। इस अस्पताल के आसपास एक्सीडेंट या अन्य कोई हादसा होने पर लोग यहां ले जाकर समय बर्बाद करने की बजाय जिला अस्पताल ही जाना ज्यादा बेहतर समझते हैं।
डाक्टरी पढ़ रहे छात्रों का भविष्य अधर में इस सुपर फिसेलिटी हास्पिटल एण्ड मेडिकल कालेज में एमबीबीएस की 100 सीटें हैं। पढ़ाई भी हो रही है मगर पढ़ाने वाले ही नहीं हैं। योग्य प्रोफेसर्स की तैनाती न होने की वजह से कम योग्यता वाले लोग यहां तक कि सिम्पल एमबीबीएस डॉक्टर ही इनका क्लास ले रहे हैं। इन स्थितियों के बीच यहां पढऩे वालों को एमबीबीएस की डिग्री भले ही मिल जाये मगर वह कितने योग्य डाक्टर बनेंगे, इसकी कल्पना की जा सकती है।
First Phase Election 2024 : पहले चरण में 60 प्रतिशत से ज्यादा मतदान, यहां देखें कहा कितना मतदान
Election 2024 : सबसे ज्यादा पश्चिम बंगाल और सबसे कम बिहार में मतदान
पहले चरण के बाद भाजपा का दावा : देश में पीएम मोदी की लहर, बढ़ेगा भाजपा की जीत का अंतर
Daily Horoscope