गुरदासपुर । पाकिस्तान और भारत सरहद के पास बसे
क़स्बा डेरा बाबा नानक यहां सिखो के पहले गुरु नानक देव जी की तरफ से
अपने जीवन का सबसे ज्यादा समय बिताया गया। यहां स्थापित
गुरुद्वारा में उनकी तरफ से उदासियो के वक़्त पहना गया पहरावा जो चोला था
वो आज भी वहां मौजूद है। इस जगह हर साल 3 दिन मेला चलता है जो " चोले
दा मेला " से मशहूर है और इस साल भी इस मेले के में हिसा लेने के लिए
डेरा बाबा नानक में हजारों श्रद्धालुओं का तांता लगा हुआ है । [ श्याम मसाले ने कराई घर घर में मौजूदगी दर्ज] [ एक ऐसा मंदिर जिसमें शिला रूपी स्वयंशम्भू का आकार बढ़ रहा है ] [ अपने राज्य / शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे]
सिखों के पहले गुरु गुरु नानक देव जी का चोला साहिब डेरा बाबा नानक
क़स्बा में श्रद्धालुओं के दर्शन के लिये रखा गया गुरुनानक देव जी का चोला
जिसे खुद गुरुनानक देव जी ने अपनी चौथी उदासी की यात्रा के समय पहना था और
इस चोले पर फारसी में भी कुछ सन्देश लिखे हुए है और इस पर कुरान शरीफ के
फलसफे भी दर्ज है । यह चोला पहन कर गुरु नानक देव जी ने अफगानिस्तान और
दूसरे मुल्कों में जाकर एक शांति और धार्मिक एकता का सन्देश फैलाया था।
यह एतिहासिक चोला एक सिख तोता राम को अफगानिस्तान में गुरु अर्जनदेव जी ने दिया था।
वह बुजुर्ग हो गया तो उसने इस डर से की इसे को कोई खराब न कर दे उस ने गुरु
नानक के चोले को वहीँ अफगानिस्तान में छिपा दिया था। गुरु नानक जी
की वंश से बाबा काबलीमल जी को यह चोला मिला और तब से गुरु नानक जी की वंश
से सम्बदित परिवार वाले यहाँ सेवा कर रहे है। हर साल इस चोले के मेले
के लिये जिला होशियारपुर के गांव खडिला सणिया से हज़ारों की तादाद में लोग
संगत के रूप में एक नगर कीरतन लेकर यहाँ दर्शन के लिये पोचते है , और लाखो
की तादाद में लोग देश और विदेश से यहां आकर गुरुनानक देव जी के चोले
के दर्शन करते है।
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