अभिषेक मिश्रा, लखनऊ। भले ही कांग्रेस और
समाजवादी पार्टी में विधानसभा चुनाव के लिए गठबंधन हो गया हो, लेकिन कई सीटें इस
गठबंधन के लिए सिरदर्द बनेंगी। खासतौर पर बागी बाजी पलट सकते हैं। करीब डेढ़ दर्जन
से ज्यादा सीटों पर बागियों को मनाने के लिए इस गठबंधन को मशक्कत करनी पड़ेगी।
असल में कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी और यूपी
के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने यूपी को ये साथ पसंद है नारे के
साथ सपा-कांग्रेस गठबंधन के संयुक्त प्रचार अभियान का आगाज तो कर दिया लेकिन अंजाम
अभी बाकी है। क्योंकि सीटों के बंटवारे को लेकर दोनों दलों में स्थानीय स्तर पर
नेताओं में नाराजगी है। हालांकि बरेली कैंट सीट का विवाद तो सुलझ गया है। लेकिन
मुरादाबाद मंडल में कांग्रेस स्वार-टांडा पर सीटिंग विधायक ने दावा किया था।
मगर
आजम खां के आगे उसकी नहीं चली। आजम के बेटे अब्दुल्लाह स्वार-टांडा सीट से सपा
उम्मीदवार हैं। ठाकुरद्वारा में सपा की ओर से मैदान में उतारे गए नवाज जान ने
पिछली बार कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा था और तीसरे स्थान पर रहे। विधायक सर्वेश
सिंह के सांसद चुने जाने के बाद क्षेत्र में हुए उपचुनाव में उन्होंने साइकिल की
सवारी कर ली और विधानसभा पहुंच गए। सपा से दोबारा उन्हें टिकट मिलने से कांग्रेस
नाराज है।
मुरादाबाद देहात सीट पर कांग्रेस का दावा खारिज
होने से भी कार्यकर्ताओं में नाराजगी है। सपा ने यहां मौजूदा विधायक शमीमुल हक का
टिकट काटकर जिलाध्यक्ष हाजी इकराम कुरैशी को मैदान में उतारा है, जबकि
शिवपाल यादव ने सौलत अली को प्रत्याशी बनाया था। साइकिल-सपा के अखिलेश खेमे के पास
जाने के बाद सौलत ने पीस पार्टी से पर्चा भर दिया है। वहीं, शमीमुल ने
सपा के चुनाव चिन्ह के बगैर नामांकन दाखिल किया।
कुछ ऐसा ही हाल लखीमपुर खीरी की पलिया सीट का
भी है। यहां पर सपा नेता अनीता यादव ने हाईकमान की ना के बाद भी नामांकन कर
मुश्किलें खड़ी कर दी हैं। श्रीनगर सुरक्षित सीट भी आपसी झगड़े से सपा के गले की
हड्डी बन गई है। पीलीभीत की बीसलपुर सीट सपा ने कांग्रेस के लिए छोड़ी है। इससे
नाराज रत्नेश गंगवार भाजपा में शामिल हो गए हैं। जबकि नीरज गंगवार भी नाराज हैं।
कांग्रेस
ने बसपा से आए अनीस अहमद खां उर्फ फूलबाबू को प्रत्याशी बनाया है, जिससे
कांग्रेसी नागेश पाठक विरोध पर उतर आए हैं।
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