गोंडा। विधानसभा
चुनाव में
किसी भी
प्रत्याशी के
लिए सोशल
मीडिया पर
प्रचार करना
अब मंहगा
पड़ेगा। आयोग
के निर्देशानुसार पूर्व प्रमाणन
के बिना
सोशल मीडिया
पर किया
जाने वाला
प्रचार न
केवल आचार
संहिता उल्लंघन
के दायरे
में मानते
हुए सम्बंधित
के विरुद्ध
वैधानिक कार्रवाई
की जाएगी अपितु न्यूनतम
76 हजार रुपए
भी प्रत्याशी
के खाते
में जोड़ा जाएगा।
भारत निर्वाचन
आयोग ने
सोशल मीडिया
को भी
इलेक्ट्रानिक मीडिया
की श्रेणी
में रखते
हुए मीडिया
प्रमाणन एवं
व्यय अनुवीक्षण
समिति (एमसीएमसी की पूर्व
अनुमति के
बिना विज्ञापनों
के प्रसारण
पर रोक
लगा रखी
है। जिला
स्तर पर
खर्चों के
आंगणन के
लिए मुख्य
कोषाधिकारी की
अध्यक्षता में
चार सदस्यीय
समिति का
गठन किया
था। समिति
ने सर्व
सम्मति से
जिला निर्वाचन
अधिकारी को
जो रिपोर्ट
सौंपी है
उसमें कहा
गया है
कि यह
मानने का
पर्याप्त आधार
है कि
किसी भी
प्रत्याशी को
चुनाव के
मद्देनजर नामंाकन
प्रक्रिया शुरू
होने से
लेकर मतदान
समाप्ति तक
तकरीबन एक
माह तक
की अवधि
के लिए
सोशल मीडिया
पर व्यापक
प्रचार-प्रसार
हेतु एवं
सुव्यस्थित तंत्र
की स्थापना
करनी पड़ेगी।
इसके तहत
उसे एक
सुसज्जित कार्यालय
बनाना होगा।
साथ ही
कम्प्यूटर व
सहवर्ती उपकरण
के अलावा
इस अवधि
के लिए
एक दक्ष
आपरेटर की
आवश्यकता होगी।
कुल मिलाकर
उसे इस
कार्य पर
न्यूनतम 76 हजार
रुपए खर्च
करना होगा।
इसमें इंटरनेट
कम्पनियों एवं
वेबसाइट को
किया जाने
वाला भुगतान
सम्मिलित नहीं
है।
जिला निर्वाचन
अधिकारी आशुतोष
निरंजन ने
बताया कि
समिति की
रिपोर्ट के
अनुरूप किसी
भी राजनीतिक
दल प्रत्याशी
अथवा उसके
समर्थक द्वारा
सोशल मीडिया
पर चुनावी
विज्ञापन को
प्रसारित करने
के लिए
न्यूनतम 76000 रुपए
उसके चुनाव
खर्च में
अनिवार्य रूप
से शामिल
किया जाएगा।
इंटरनेट कम्पनियों
व वेबसाइट
को किए
जाने वाले
भुगतान के
बारे में
भारत निर्वाचन
आयोग से
पृथक से
मार्गदर्शन मांगा
गया है। [@ Breaking News : अब घर बैठे पाए Free JIO sim होम डिलीवरी जानने के लिए यहाँ क्लिक करे]
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