लखनऊ।भले ही अखिलेश यादव समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष के तौर पर प्रस्तावित किए गए हैं। लेकिन इस पूरी कहानी की एंडिंग अभी बाकी है।सवाल ये है कि क्या मुलायम सिंह इसे स्वीकार करते हैं या फिर शिवपाल यादव नेतृत्व स्वीकार करते हैं या मुलायम के करीबी और अखिलेश के विरोधी इसे स्वीकार करते हैं। जो इस राष्ट्रीय अधिवेशन में शामिल नहीं थे। [@ Exclusive- राजनीति के सैलाब में बह गई देश के दो कद्दावर परिवारों की दोस्ती]
क्या मुलायम की पत्नी साधना गुप्ता और उनकी पुत्रवधू अपर्णा यादव अखिलेश का नेतृत्व स्वीकार करते हैं। लेकिन इतना तो तय है कि शिवपाल यादव के पास नई पार्टी बनाने के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं है। जिसके जरिए वह आगामी चुनाव में अखिलेश के खिलाफ विपक्षी दलों के साथ चुनावी गठबंधन कर सकते हैं। इससे एक तरफ वह अखिलेश को पटखनी दे सकते हैं वहीं अपने राजनैतिक कैरियर को बचा सकते हैं। इसमें उनके साथ अमर सिंह और बेनी प्रसाद वर्मा भी आ सकते हैं।
असल में जो पिक्चर अभी तक दिखाई दे रही है। वह पूरी तरह से साफ नहीं है। पहला तो मुलायम सिंह का स्टैंड है। जो पूरी कहानी को साफ करेगा। मुलायम सिंह ने कड़े सघर्ष के बाद पार्टी को खड़ा किया है और इसमें शिवपाल यादव की भूमिका को नकारा नहीं जा सकता है। शिवपाल की प्रदेश के संगठन में मजबूत पकड़ है। ये बाद किसी से छिपी नहीं है। ऐसे में मुलायम को अपने भाई के कैरियर को बचाने क सथ ही अपने उन करीबियों को भी सेफ फ्यूचर के लिए भी सोचना होगा। जिसमें शिवपाल के साथ ही अपने दूसरे बेटे प्रतीक यादव का भी कैरियर है। एक संरक्षक के तौर पर सभी जानते हैं कि उनकी क्या भूमिका रहेगी।
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