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वैज्ञानिकों ने किसानों को पशु उपचार के तरीके बताएं

Scientists tell farmers Animal Treatment Methods - Karnal News in Hindi

करनाल। राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान में चल रहे जय किसान, जय विज्ञान सप्ताह के अंतर्गत मंगलवार को संस्थान के वैज्ञानिकों ने गांव गढ़ी गुजरान में किसान गोष्ठी का आयोजन किया। वैज्ञानिकों ने किसानों को पशुओं की मुख्य बीमारियों के लक्ष्ण एवं उनकी रोकथाम, दूध एवं दूध से बनने वाले उत्पाद, वर्षभर हरे चारे का उत्पादन संबंधित जानकारी बारे में विस्तार से बताया। इसके अलावा डेयरी से संबंधित प्रश्नोतरी प्रतियोगिता भी करवाई गई, सही जवाब देने वाले किसानों को मिनरल मिश्रण के पैकेट दिए गए । वैज्ञानिकों की टीम में पशु चिकित्सक डा. मान सिंह , डेरी विस्तार विभाग से डा. बीएस मीणा तथा डा. गोपाल सांखला, डेयरी प्रजनन विभाग से डा. निशांत, डेयरी पशु पोषण विभाग से डा. चंद्रदत एवं डेरी टेक्नोलोजी विभाग से तानिया शामिल रही। पशु चिकित्सक डा. मा‌न सिंह ने बताया कि पशु को दूध निकालने के बाद कम से कम आघा घंटा बैठने न दे, क्योंकि उस समय तक थन का द्वार खुला होता है और किटाणु थन में प्रवेश कर जाते हैं। जिसकी वजह से पशु थनैला रोग के प्रभाव में आ जाता है। उन्होंने बताया कि पशु के सिंघो कटाई बारिश के मौसम में नहीं करनी चाहिए।
डा. निशांत ने बताया कि देश का हर हिस्सा प्रजनन की समस्या से प्रभावित है। जिसकी वजह से पशुपालक को काफी नुकसान उठाना पड़ रहा है। वे इस समस्या से निजात दिलवाने की दिशा मेंं ही काम कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि पशु के हीट में आना का सही समय ब्याने के 60 दिन के बाद होता। उसके बाद उसका कृत्रिम गर्भाधान करवाना चाहिए।
डा. गोपाल सांखला ने बताया कि पशुपालकों को चिचड़ी से निजात दिलवाने की दवाई बताई और साफ सफाई की ओर ध्यान देने की नसीहत दी। उन्होंने बताया कि जहां पर पशु को रखा जाता है वहां पर भी एग्रोवेट नामक दवाई का छिड़काव करना चाहिए। डा. बीएस मीणा ने बताया कि दस किलो दूध देनी वाले पशु को प्रतिदिन 15 से 20 किलोग्राम हरा चारा, पांच से छह किलोग्राम सूखा चारा और चार से पांच किलोग्राम तक दाने की जरूरत होती है।
डा. चंद्रदत ने दाना मिश्रण तैयार करने के बारे में बताया कि खली 25 से 35 प्रतिशत, मोटे अनाज 25 से 35 प्रतिशत, चौकर 10 से 30 प्रतिशत, खनिज लवण दो प्रतिशत एवं एक प्रतिशत साधारण नमक लेकर दाना मिश्रण तैयार किया जा सकता है।

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Web Title-Scientists tell farmers Animal Treatment Methods
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