उमाकांत त्रिपाठी [@ साल 2016 में गूगल पर सबसे ज्यादा सर्च हुए टाॅप 10 टाॅपिक्स]
नई दिल्ली। सपा का दंगल जारी है। पार्टी चिन्ह साइकिल के लिए पिता-पुत्र में सियासी युद्ध अभी भी चल रहा है। चुनाव आयोग ने जवाब देने के लिए दोनों पक्षों को आज की तारीख दे रखी थी। जिसको लेकर अखिलेश यादव ने चुनाव आयोग को 200 से अधिक विधायकों 15 सांसदों और 5000 से अधिक कार्यसमितियों के दस्तखत वाला पत्र सौंपा है। वहीं आज मुलायम सिंह यादव साइकिल को अपने पक्ष में करने के लिए दस्तावेज सौंपेगे। कुछ दिन पहले रामगोपाल यादव ने एक अधिवेशन बुलवाकर अखिलेश यादव को राष्ट्रीय अध्यक्ष घोषित करवा दिया था जबकि शिवपाल यादव को प्रदेशाध्यक्ष के पद से हटवा दिया था।
दोनों पक्षों में समझौते की उम्मीद खत्म होने के बाद ज्यादातर विधायक अखिलेश खेमे में हैं। सूत्रों के मुताबित 90 प्रतिशत विधायक, समर्थक और कार्यकर्ता अखिलेश यादव के पक्ष में हैं जबकि महज कुछ गिने-चुने नेता ही मुलायम सिंह यादव के पक्ष में हैं। ऐसे में सवाल यह उठता है कि जिन लोगों को मुलायम सिंह यादव ने सियासत सिखाई आखिर वही लोग सियासी दांव दिखाते हुए अपने गुरु का साथ छोडक़र अखिलेश खेमे की तरफ क्यों जा रहे हैं। समाजवादी पार्टी की स्थापना के 25 साल हो चुके हैं।
पार्टी की स्थापना धरतीपुत्र कहे जाने वाले मुलायम सिंह यादव ने की थी। सूत्रों के मुताबिक धरतीपुत्र कहे जाने वाले मुलायम सिंह यादव के साथ 10 विधायक भी नहीं हैं जो उनका साथ दे सकें। इस मामले में इनसे ज्यादा बड़े खिलाड़ी तो अमर सिंह निकले जो कि पार्टी से निकले थे तो 8 विधायक उनके साथ थे।
इससे पहले जब अखिलेश यादव ने सभी विधायकों की बैठक बुलाई थी तो उसमें 200 से अधिक विधायक और 30 से ज्यादा एमएलसी नेता अखिलेश से मिलने पहुंचे थे। वहीं मुलायम सिंह यादव द्वारा सपा मुख्यालय पर बैठक बुलाई गई थी जिसमें मुश्किल से 20 विधायक और 60 उम्मीदवार ही पहुंचे थे।
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