टोंक। बचपन की मासूमियत के बीच कब घर वालों ने ब्याह कर दिया, ठीक तरह से याद नहीं। जिन्दगी की पाठशाला में जब पढाई शुरू की तो अहसास हुआ कि कुछ खोने वाला है, बस तभी तय कर लिया कि अब घर वालों की भूल को सुधार कर ही दम लेंगे। कुछ बाल दुल्हनों ने अपने-अपने गांव में बाल-विवाह की कुप्रथा को नकारने की एक मुहिम ही शुरू कर दी है। ग्राम तंवर की झोपडिया, अरनिया केदार, पहाडी, बागोल्या, सरौली, तितरिया, बीजवाल, चन्दलाई, नातडी, सिरोही, उस्मानपुरा, खेडूलिया की नाबालिग सीमा, किरण, कमल, रिंकी, पिंकी, निषा, प्रिया, बसन्ती, मंशा, विमला, सीया (सभी परिवर्तित नाम) इस मुहिम की अगवा बनी हैं। उन्होंने अपने-अपने घर वालों को साफ कह दिया है कि अब वे सिर्फ पढाई करेगी, जब 18 साल की हो जाएगी, तभी वे ससुराल को विदा होगीं। दस से 16 वर्ष आयु की ये लाडली देवनारायण आवासीय विद्यालय चराई में अध्ययनरत है। शिक्षा से बदल रही इस बयार की आहट लाडली सम्मान अभियान के ग्राम भ्रमण कार्यक्रम के दौरान दिखाई दी।
बाल-विवाह जैसी कुरीति का डंक झेल रही कुछ बालिकाओं को अपनी ससुराल का नाम तक पता नही है तो कुछ पति का चेहरा भी याद नहीं। अभियान के ग्राम मित्रों ने जन्म से लेकर 18 वर्ष तक की जीवन शैली को सांप-सीढी लूडो खेल के माध्यम से मनोबैज्ञानिक विधि से खेल खेल में इन बच्चियों को समझाया तो लाडलियों के मानस पटल पर इसका गहरा असर हुआ। काचरिया की रिम्पू को स्कूल में तब पता चला जब उनके दाखिला के समय शादी नहीं करने का शपथ पत्र भरवाया गया तो वह खुष हो गई और उसने पक्का इरादा कर लिया है कि अब वह पढ लिखकर 18 साल की होने के बाद ही ससुराल जाएगी। अबोध मन में षिक्षा की लगन अंकुरित होने के बाद कुरीतियों की दीवार सामाजिक बदलाव के साथ ताष के पत्तों की तरह ढह जाती है, इसको ये बालिकाएं साबित कर रही हैं। फिलहाल देवनारायण गुर्जर आवासीय वि़द्यालय में पढ रही लाडलियों के हौसलों को देखकर उजाले की किरण दिखाई दे रही है। बाल विवाह के विरूद्व पोस्टर हाथ में लिए बालिकाओं ने नारा भी गढ लिया पहले होगी पढाई, 18 के बाद ही होगी बिदाई।
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