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यहां भी बहती है एक गंगा, बीस भादो को लगता है विशाल मेला

river flows here, suppose the vast multitude twenty Bhado - Kullu News in Hindi

कुल्लू(धर्मचन्द यादव)। नैसर्गिक सौंदर्य के लिये विख्यात हिमाचल प्रदेश की कुल्लू घाटी को देवभूमि के नाम से भी जाना जाता है। चूंकि घाटी के हर गांव हर कोने में किसी न किसी देवता का मंदिर या स्थान है वहीं अनेक स्थल ऋषि मुनियों व भगवान के अनेक नामों से भी जुडे हैं, जो देश विदेश के सैलानियों व श्रद्वालुओं के लिये आकर्षण का केंद्र बने हुये हैं। ऐसा ही एक तीर्थ स्थल है खीर गंगा। जो खास कर विदेशी सैलानियों के लिये स्वर्ग ये कम नहीं है। कुल्लू घाटी के एक छोर में स्थित गर्म पानी के लिये प्रसिद्व मणिकर्ण से लगभग 20-25 किमी दूर देवदार के घने जंगल में स्थित खीर गंगा का अपना अलग ही आकर्षण है। उंचे पहाडों की गोद में एक पहाड की ढलान पर स्थित खीर गंगा धार्मिक स्थल होने के साथ-साथ पर्वतारोहियों व सैलानियों के लिये काफी महत्वपूर्ण स्थल है।
अब खीर गंगा का महत्व वैसे भी काफी बढ गया है। क्योंकि एशिया की सबसे बडी दूसरी 2051 मैगावाट की पार्वती जल विद्युत परियोजना का मुख्य कार्य स्थल भी खीर गंगा के आसपास ही है। देवदार व चीड के सांय-सांय करते वृक्षों से छादित खीर गंगा के रास्ते में वरशैणी, पुलगा, तुलगा, रूद्रनाग आदि अनेक मनोरम स्थल हैं। हालांकि पहले यह सारा रास्ता पैदल था लेकिन अब पार्वती जल विद्युत परियोजना का निर्माण शुरू होने से वरशैणी तक सडक निकल गई है और चहल-पहल भी बहुत बढ गई है। खीर गंगा के पीछे भी एक रोचक, ऐतिहासिक व धार्मिक गाथा जुडी हुई है। इस गाथा के अनुसार भगवान शिव व माता पार्वती के दो पुत्र कार्तिकेय व गणेश थे। उन दोनों में अकसर योग्यता के आधार पर एक-दूसरे को नीचा दिखाने की होड लगी रहती थी। एक बार भगवान शिव ने दोनों पुत्रों को सारी सृष्टि की परिक्रमा करने के लिये कहा, तो दोनों पुत्र परिक्रमा करने चल पडे। कार्तिकेय तो अपने वाहन मोर पर बैठ कर सृष्टि की परिक्रमा करने निकल पडा।
मगर गणेश के लिये चूहे पर सृष्टि की परिक्रमा करना पूरी तरह से असंभव था इसलिये गणेश संशय में पड गया कि क्या किया जाये, तब गणेश ने एक युक्ति निकाली और अपने माता-पिता की तीन बार परिक्रमा की और इस तरह से गणेश ने कार्तिकेय से पहले यह प्रतियोगिता जीत ली। मगर जब कार्तिकेय को वापिस लौटने पर सारी घटना का पता चला तो वह माता-पिता से नाराज होकर दूर पहाडों में तपस्या करने चला गया। काफी दिनों तक जब कार्तिकेय वापिस नहीं लौटा तो भगवान शिव व माता पार्वती बेटे की तलाश में निकले। काफी तलाश करने के बाद उन्हें कार्तिकेय घने जंगल में एक पहाड की गुफा में तपस्या लीन मिला। कठिन तपस्या करने से कार्तिकेय काफी कमजोर हो गया था। दोनों ने उससे वापिस चलने का आग्रह किया लेकिन कार्तिकेय ने उनके साथ चलन से साफ मना कर दिया।
दुःखी होकर माता पार्वती ने वहां पर साफ पानी का चश्मा निकाला तो भगवान शिव ने अपना तीसरा नेत्र खोल कर उसे खीर में बदल दिया। ताकि कार्तिकेय भूख-प्यास से परेशान न हो। जनश्रुतियों के मुताबिक कार्तिकेय मणिकर्ण घाटी के दुर्गम पहाड में तपस्या करने आये थे। कालांतर में इसी का नाम खीर गंगा पडा। मगर समय के साथ-साथ खीर गर्म दूध में बदल गई और अंततरू अब वहां पर गर्म व दुधिया पानी के चश्मे ही रह गये हैं। मगर श्रद्वालुओं व जिज्ञासुओं के लिये इस स्थान का महत्व आज भी कम नहीं हुआ है। अब खीर गंगा में एक मंदिर बना दिया गया है और रहने के लिये सराय भवन भी बनाये गये हैं। यहीं एक चट्टान से दुधिया रंग के गर्म पानी का चश्मा फुटता है। आस पास के गांव के लोगों ने यहां के विकास के लिये एक कमेटी का गठन किया है।
कमेटी ने ही यहां पर महिलाओं व पुरूषों के लिये अलग-अलग स्नानागार बनाये हैं। सर्दियों के अलावा यहां पर खीर गंगा कमेटी द्वारा नियमित रूप से लंगर लगाया जाता है। बीस भादो को खीर गंगा में एक विशाल मेला लगता है। उस दिन श्रद्वालुओं के साथ-साथ देवी-देवता भी यहां स्नान करने आते हैं। खीर गंगा से ही एक पैदल रास्ता स्पिति घाटी की पिन वैली को जाता है। मानतलाई होते हुये यह रास्ता बहुत ही खतरनाक जंगली और जोखिम भरा है। कालांतर में इस रास्ते का प्रयोग केवल व्यापारी ही करते थे लेकिन अब यह रास्ता साहसिक पर्यटन का आनंद उठाने वाले सैलानियों के लिये ट्रेकिंग रूट बना हुआ है। गर्मियों व बरसात के मौसम में इस रास्ते से विदेशी सैलानी पैदल यात्रा पर जाते हैं। खीर गंगा विदेशी सैलानियों का ही अड्डा है। यहां पर ज्यादातर विदेशी सैलानी ही मिलते हैं। खीर गंगा एक बेहतर व सुंदर सैरगाह होने के बावजूद भी प्रदेश के पर्यटन मकहमे द्वारा उपेक्षित है।
हालांकि पार्वती जल विद्युत परियोजना द्वारा खीर गंगा के रास्ते में वरशैणी तक सडक बना दी गई है। जिससे खीर गंगा जाने वालों को काफी सुविधा हो गई है। खीर गंगा जाने के लिये कुल्लू व भुंतर से वरशैणी तक बस या टैक्सी द्वारा तथा वहां से आगे पैदल जाया जा सकता है। यहां पर ठहरने की कोई उचित व्यवस्था नहीं हैए ठहरने की व्यवस्था मणिकर्ण में ही है लेकिन वरशैणी में भी अब गैस्टहाउस बन गये हैं मगर बेहतर ठहराव मणिकर्ण ही है। इसके साथ-साथ अगर पर्यटन महकमा भी इसके विकास की तरफ ध्यान दे तो खीर गंगा एक धार्मिक स्थल होने के साथ-साथ बेहतर पर्यटन स्थल भी साबित हो सकता है। जिससे आस-पास के बेरोजगारों को भी रोजगार मिलेगा और सरकार को भी आमदनी होगी।

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