नई दिल्ली। दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि प्रेग्नेंसी के दौरान यदि कोई महिला पति को यौन संबध बनाने से रोकती है तो यह न तो क्रूरता है और न ही इस आधार पर तलाक को मंजूरी दी जा सकती है। दिल्ली की फैमिली कोर्ट ने क्रूरता के आधार पर एक व्यक्ति की तलाक याचिका ठुकराते हुए यह टिप्पणी की। कोर्ट ने यह भी कहा कि यदि पत्नी सुबह देर से सोकर उठती है और बिस्तर पर चाय की फरमाईश करती है तो स्पष्ट है कि वह आलसी है और ‘आलसी होना’ निर्दयी या क्रूर होना नहीं है। जस्टिस प्रदीप नंदराजोग और प्रतिभा रानी की बैंच ने मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि गर्भ में बच्चा होने के समय जाहिर है कि उसके लिए सेक्स संबंध बनाना असुविधाजनक रहा होगा और यदि यह मान लिया जाए कि गर्भावस्था का समय बढऩे के साथ-साथ उसने अपने पति के साथ पूरी तरह सेक्स संबंध बनाना छोड़ दिया तो इससे उसकी क्रूरता साबित नहीं होती है। फैमिली कोर्ट ने कहा कि याचिका में पति की ओर से लगाए गए आरोप ‘बेमतलब’ और ‘अस्पष्ट’ हैं। हाईकोर्ट ने निचली अदालत की इस बात पर अपनी सहमति जाहिर की कि उसने अपनी याचिका में अपनी पत्नी पर लगाए आरोपों के स्पष्ट ब्यौरे नहीं दिए हैं। ये मामला 2012 का है। कोर्ट ने कहा- अगर ये पत्नी के संबंध बनाने से इनकार करने की बात को मान लिया जाए, तो ये भी देखना होगा कि मई 2012 में वो तीन हफ्ते की प्रेग्नेंसी में थी।
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