झांसी। उत्तर प्रदेश में
चुनाव की रणभेरी बजते ही नेताओं ने बुंदेलखंड की ओर कूच करना शुरू कर दिया है। आलम
यह है कि आज हर दल के नेता बुंदेलखंड की सुध लेने पहुंच रहे हैं। बुंदेलखंड दशकों
से सूखे और पलायन की मार से जूझ रहा है, लेकिन इसकी बदहाली की तरफ किसी का ध्यान
नहीं गया। सरकारें बदलती हैं, लेकिन बुंदेलखंड के हालात जस के तस रहते हैं। नेता
कोई भी जीते, लेकिन बुंदेलखंड हमेशा हारता ही आया है।
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सर्वाधिक पिछड़े और उपेक्षित क्षेत्रों में से एक बुंदेलखंड चौथे चरण के तहत 23
फरवरी को मतदान करने जा रहा है। हालात ये हैं कि कोई अलग बुंदेलखंड राज्य बनाने के
वादे कर रहा है तो कोई विकास की खोखली उम्मीदों की अलख जगा दुखती रग पकड़ रहा है।
कभी शौर्य और पराक्रम का गढ़ रहा बुंदेलखंड बदहाली के दौर से जूझ रहा है। भारतीय
जनता पार्टी सत्ता में आने पर बुंदेलखंड के विकास का दंभ तो भर रही है, लेकिन
मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने उसके इरादों पर सवाल उठाते हुए हाल ही में कहा था कि
`अच्छे दिन लाने वालों ने बुंदेलखंड में पानी के टैंकरों वाली खाली ट्रेन भेजी थी।
इनसे क्या उम्मीद की जाए।`
अखिलेश समाजवादी पार्टी और भाजपा में अंतर बताते हुए कहते हैं कि समाजवादियों ने
बुंदेलखंड के लोगों की जरूरत के समय मदद की है, सूखे के मौके पर राहत पैकेट बांटे
हैं, पेंशन दे रही है, लेकिन अच्छे दिन वाले धोखा करते हैं, तभी तो सूखे के समय
बुंदेलखंड में पानी की खाली ट्रेन भेजी गई थी।
बुंदेलखंड में विधानसभा की 19 सीटें हैं, जिनमें समाजवादी पार्टी के पास सात,
बहुजन समाज पार्टी के पास सात, कांग्रेस के पास चार और भाजपा के पास एक सीट है।
हालांकि, भाजपा की मुखर नेता उमा भारती बुंदेलखंड में खनिज की लूट पर सपा पर
निशाना साधा है। उमा ने खनिज की लूट पर कहा है कि बुंदेलखंड से खनिज माफियाओं ने
पिछले पांच वर्षो में लगभग चार लाख करोड़ रुपये के खनिज की लूट की है। ऐसे में
बुंदेलखंड की जनता बदहाल रही, लेकिन मुख्यमंत्री ने चुप्पी साध ली?
बुंदेलखंड जीतने की होड़ में हर पार्टी एक-दूसरे की गर्दन काटने में लगी है। बसपा
सुप्रीमो मायावती हर बार की तरह अलग बुंदेलखंड राज्य का राग अलापने लगती हैं।
बुंदेलखंड के एक स्थानीय निवासी ने आईएएनएस को बताया, "मायावती हर बार की तरह
चुनाव में अलग बुंदेलखंड राज्य बनाने का मुद्दा उठाती हैं। इससे लोगों को कोई फर्क
नहीं पड़ता कि अलग बुंदेलखंड बने या नहीं।"
विशेषज्ञ कहते हैं कि बुंदेलखंड शौर्यो की भूमि रही है। यह आर्थिक रूप से समृद्ध
थी, लेकिन आर्थिक लूट और प्रशासन के ढुलमुल रवैये ने सब चौपट कर दिया। अब नेताओं
को सिर्फ चुनावों के वक्त ही बुंदेलखंड की याद आती है।
बुंदेलखंड के किसान सूखे की मार से आत्महत्या कर रहे हैं, प्रशासन मूकदर्शक बना सब
देख रहा है। इस तादाद में पलायन हो रहा है कि अधिकतर घरों में ताले जड़े हुए हैं।
यहां बुनियादी सुविधाएं किताबी बातें रह गई हैं और इन सबके बीच नेता विकास की
बातें कर वोट मांगने आ रहे हैं। इससे अधिक हास्यास्पद स्थिति और क्या होगी?
बुंदेलखंड से दिल्ली आकर बस गए विपिन जयन ने आईएएनएस को बताया, "हाल ही में
मोदी ने एक रैली में कहा कि उत्तर प्रदेश में बुंदेलखंड का सबसे बुरा हाल है तो
केंद्र सरकार ने पिछले लगभग ढाई साल से बुंदेलखंड की आर्थिक मदद के लिए क्या किया?
अब चुनाव आ गए हैं तो वह बुंदेलखंड की बदहाली का रोना रो रहे हैं।"
वह अखिलेश सरकार को भी कटघरे में खड़ा करते हुए कहते हैं कि अखिलेश सरकार पेंशन
देने, राहत पैकेज बांटे जाने का दावा कर रही है लेकिन हकीकत में कितने जरूरतमंद
किसानों तक मदद पहुंची? उन्होंने क्या इसकी सुध ली?"
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