दुर्गेश उपाध्याय, लखनऊ।
धरतीपुत्र
मुलायम सिंंह इन दिनों पशोपेश में हैं, वे बेचारे तय नहीं कर पा रहे हैं
कि उन्हें करना क्या है। एक तरफ बेटे ने पार्टी पर कब्जा कर लिया और
कांग्रेस से गठबंधन कर लिया वहीं दूसरी ओर उनके अपने समर्थकों में से
बहुतायत के टिकट कट गए। अब उन्होंने सपा और कांग्रेस गठबंधन पर हमला बोलते
हुए अखिलेश यादव पर सत्ता हथियाने के लिए किया गया समझौता करार दिया और
प्रचार करने से इनकार कर दिया है। साथ ही उन्होंने बोला है कि मैं पार्टी
को खत्म नहीं होने दूंंगा। राजनीति के धुरंधर मुलायम
के सियासी कैरियर में ऐसा पहली बार हो रहा है कि उन्हें इतनी मुश्किलात़
पेश आ रही हैं और उनकी बेबसी साफ झलक भी रही है। और हो भी क्यों न, आखिर
जंग अपने ही बेटे से जो हो रही है. और इस जंग में वो फिलहाल मात खाते नजर आ
रहे हैं।
तो
क्या इसे उनके राजनीतिक सफर का अंत समझ लेना चाहिए, मेरे ख्याल से नहीं,
क्योंं कि अगर मुलायम सिंह के सियासी सफर पर नजर डाली जाए तो ऐसे मौके पहले
भी आए जब उन्होने भीषण चुनौतियों का सामना करते हुए सफलता पाई और अच्छे
अच्छों को पटखनी दी। जो लोग उन्हें नजदीक से जानते हैं उनका कहना है कि
मुलायम सिहं यादव राजनीति में धोबिया पछाड़ के माहिर खिलाड़ी हैं और वो
इतनी जल्दी हथियार रखने वाले नहीं हैं।
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