जयपुर। जलदाय विभाग घूसकांड की जांच कर रहे भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (एसीबी) ने एक और मामला उजागर किया है। रिटायर्ड चीफ इंजीनियर अनिल कुमार भार्गव व तत्कालीन अधिशासी अभियंता मनीष बेनीवाल (जयपुर खंड-प्रथम) ने फर्मों को मुनाफा दिलाने के लिए टेंडर बढ़ाकर 28.50 करोड़ रुपए के काम जारी कर दिए। भार्गव रिटायर हो चुके हैं। आरोपी अधिकारियों ने 12 फर्मों को वर्ष 2012 से 2014 के बीच अलग-अलग काम दिलाया। एसीबी की प्रारंभिक जांच में सामने आया कि दोनों आरोपी अधिकारियों को इतनी राशि के टेंडर जारी करने का अधिकार नहीं था। उन्होंने पद का दुरुपयोग कर सरकारी राजस्व को नुकसान पहुंचाया। एसीबी ने जलदाय विभाग की ऑडिट रिपोर्ट को आधार बनाकर भार्गव व बेनीवाल और सभी फर्म संचालकों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर लिया है। मैसर्स विक्रम इंजीनियरिंग वर्कर्स, डागर कंस्ट्रक्शन कंपनी, आदित्य एंटरप्राइजेज, दिनेश कंस्ट्रक्शन कंपनी, नारायण सिंह देवंदा, भंवरलाल जांगिड़, नंदनी एंटरप्राइजेज, भंवर जांगिड़, यादव कंस्ट्रक्शन कंपनी, श्याम ट्यूबवेल कंपनी, कैलाश चंद चौधरी और रामस्वरूप तिवाड़ी कंस्ट्रक्शन कंपनी को टेंडर जारी किए गए थे। एसीबी अधिकारियों ने बताया कि वर्ष 2012 से 2014 के दौरान अधिकारियों ने फर्मों को अवैध रुपए से अधिकारों से परे जाकर नलकूपों का निर्माण करने, जल संरक्षण योजना में टांकों का निर्माण करने समेत अन्य कार्यों के, पाइपलाइन बिछाने और जोडऩे, बंद हैंडपंपों को वापस चालू करने और नलकूपों में सबमर्सिबल पंप लगाने के टेंडर दिए थे। 2012 से 2014 के बीच जयपुर जलदाय विभाग के अधिकारियों द्वारा जारी किए गए टेंडरों की शिकायत हुई थी। विभाग ने ऑडिट कराई थी, जिसकी रिपोर्ट में भार्गव व बेनीवाल द्वारा अवैध रूप से टेंडर जारी करने की बात सामने आई, लेकिन अधिकारियों ने दो साल में आरोपियों के खिलाफ कार्रवाई नहीं की। एसीबी ने जब एसपीएमएल के कर्मचारियों व चीफ इंजीनियर आरके मीणा व एडिशनल चीफ इंजीनियर सुबोध जैन समेत अन्य को रिश्वत लेने व देने के आरोप में गिरफ्तार किया और विभाग से दस्तावेज जब्त किए, तो उनकी जांच में तत्कालीन अधिकारियों द्वारा भी करोड़ों रुपए का गबन करने की बात सामने आई।
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