इस संदर्भ में यह सवाल उठाने पर कि क्या उड़ी हमले और भारतीय सुरक्षाबलों
द्वारा पीओके में सर्जिकल कार्रवाई के बाद दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय
बात क्यों नहीं होनी चाहिए? मेनन ने कहा कि सैन्यबल के इस्तेमाल या भारत
द्वारा सीमा पार आतंकवादी ठिकानों पर सर्जिकल स्ट्राइक की सीमित उपयोगिता
थी। उन्होंने कहा, इससे सीमापार आतंकवाद और इंटर सर्विसिस इंटेलिजेंस
(आईएसआई) और जिहादी तंजीमों को प्रायोजित करने वाली पाकिस्तानी सेना का
दिमाग बदलने वाला नहीं है और न ही इससे आतंकवादियों के बुनियादी ढांचे नष्ट
होने वाले हैं। कुछ बदलने वाला नहीं है।
उन्होंने कहा कि शहादत देने के
लिए तैयार रहने वाले तंजीम मरने से नहीं डरते। मेनन ने कहा कि गुप्त
सीमापार गतिविधियां पिछली सरकारों के कार्यकाल में भी होती आई हैं, लेकिन
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की सरकार ने इन्हें जनता में उजागर नहीं करने का
फैसला किया, क्योंकि ये हमले जनता की राय को प्रभावित करने से कहीं अधिक
नतीजों पर केंद्रित थे। उन्होंने कहा, यदि आपका उद्देश्य देश में ही जनता
की राय को प्रभावित करता है तो आपको इसके परिणामों से निपटना होगा।
इससे
आमतौर पर लोगों की उम्मीदें भी बढ जाती हैं और फिर बढ़ी हुई उम्मीदों को
नियंत्रित करना चुनौती बन जाता है। मेनन ने कहा, जिस क्षण आप जनता के
बीच जाओगे तो ये अनुमानित नतीजे नहीं आएंगे, क्योंकि तब दोनों पक्ष इसमें
शामिल होंगे। दोनों पक्षों को यह देखना होगा कि वे डरे हुए नहीं हैं।
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