अभिषेक मिश्रा,लखनऊ। इसे चुनाव आयोग की सख्ती कहें या फिर बदलते जमाने हाईटेक चुनाव। न तो मोहल्लों में चुनावी शोर शराबा है जो घरों को छतों पर पार्टियों के झंडे।विधानसभा चुनाव को लेकर सियासी सरगर्मिंयां शबाब पर हैं, मगर चुनावी रंगत एकदम फीकी नजर आ रही है। जहां आज से ढाई दशक पूर्व चुनाव के दौरान क्षेत्र में पार्टी व प्रत्याशियों के लिए महिलाओं व युवाओं की अलग-अलग टोलियां क्षेत्र में घूमकर प्रत्याशी के लिए वोट मांगती थीं और मोहल्ले के बच्चे चुनावी बिल्ले, बिन्दिया, तख्ती, कलम, टोपी के लिए लालायित रहते थे। पर अब यह दृश्य ओझल ही हो चुके हैं। इन सभी चुनावी वस्तुओं आदि को इकट्ठा करने की जुगत करती गली-मोहल्लों में बच्चों की टोलियां अब यादों में ही रह गयी हैं। अब तो बच्चों क्या बड़ों को भी अहसास नहीं कि चुनाव हो रहा है। [@ Breaking News : अब घर बैठे पाए Free JIO sim होम डिलीवरी जानने के लिए यहाँ क्लिक करे]
इस सबके पीछे कारण है चुनाव आयोग की सख्ती। उसने प्रत्याशियों के खर्चो पर पाबंदी लगा रखी है, सो वे फूंक-फूंककर कदम रख रहे हैं। चुनावी शोर-शराबा सब चुनाव आयोग के अंकुश से दबकर रह गया है। बात यदि ढाई दशक पहले की करें तो भले ही बच्चों का चुनाव में कोई योगदान नहीं होता था, मगर चुनाव के दौरान उनकी उमंग सिर चढ़कर बोलती थी। बिल्ले जुटाने की जुगत में गली-मोहल्लों में दौड़ लगाती बच्चों की टोलियां एक अलग ही चुनावी माहौल का अहसास कराती थीं। जब भी कोई प्रचार वाहन या रिक्शा गली-मोहल्लों में पहुंचता था तो बच्चों की टोलियां उसकी ओर दौड़ पड़ती थीं। बच्चों को इससे कोई सरोकार नहीं होता था कि वह प्रचार वाहन किस प्रत्याशी या दल का है। उनकी चाह तो उससे टोपी, बिल्ले, पार्टी के निशान वाले कलम पाने की रहती थी। जैसा माइक पर सुनते वैसे ही नारे लगाते और बिल्ले मांगते। बच्चों का हाल यहां तक होता था कि उनके हाथ में झंडा किसी दल का होता था तो सिर पर टोपी किसी दल की। सीने पर बिल्ले कई-कई प्रत्याशियों के लटके रहते थे।
मुंह पर नारे होते थे जीतेगा भाई जीतेगा। मोहर तुम्हारी कहां लगेगी। प्रचार वाहनों से बिल्ले, झंडे व टोपियां पाकर बच्चे प्रत्याशियों के नारे लगाते हुए इधर से उधर घूमते हुए चुनावी माहौल बनाते नजर आते थे अब चुनाव आयोग की सख्ती के चलते चुनावी परिवेश एकदम बदल चुका है। न कहीं झंडा है और न ही बैनर। बिल्ले तो एकदम ओझल ही हो गए हैं। बच्चों में चुनाव के प्रति कहीं कोई क्रेज नजर नहीं आ रहा। उन्हें तो पता ही नहीं कि चुनाव हो भी रहे हैं।
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