मुंबई। महाराष्ट्र में वैसे तो कागज पर मुकाबला स्पष्ट रूप से पांच कोणों का नजर आ रहा है, लेकिन वास्तव में असली मुकाबला "चौकडी" बनाम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दिख रहा है। शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने जब से "टीम मोदी" के अभियान की तुलना बीजापुर के जनरल अफजल खान की विजयी सेना से की थी, उसके बाद से पूर्व सहयोगी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के साथ उसके दोबारा मेल की उम्मीद क्षीण हो गई।
हालांकि, पिछले 25 सालों में दोनों पार्टियों के बीच रिश्ते नरम-गरम रहे हैं, लेकिन 15 अक्टूबर को होने वाले विधानसभा चुनाव से पूर्व यह शिवसेना की तरफ से भाजपा पर किया गया सबसे बडा हमला था। शिवसेना और भाजपा ने 1995-99 के बीच महाराष्ट्र में सरकार बनाई थी, जब 1999 में केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार थी, लेकिन केंद्र में मौजूदा मोदी सरकार के दौरान 25 सितंबर को भाजपा ने सर्वसम्मति से शिवसेना से गठबंधन तोड लिया। दोनों के गठबंधन टूटने से आश्चर्यजनक घटनाक्रम सामने आ रहे हैं, क्योंकि अब हर पार्टी सत्ता की राह में उम्मीद की किरण देख रही है। इधर, कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) का वर्षो पुराना गठबंधन भी इसी दिन टूट गया।
महाराष्ट्र में पार्टियों की "चौकडी" में शिवसेना, कांग्रेस, राकांपा और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (एमएनएस) हैं, जो एकदूसरे की अपेक्षा भाजपा को टक्कर देने की कोशिश ज्यादा कर रहे हैं। मौजूदा परिस्थितियों में महाराष्ट्र भाजपा के पास मुख्यमंत्री पद का वह उम्मीदवार नहीं है, जिसे सभी पसंद करते हों और इसका सारा वोट मोदी की लोकप्रियता पर निर्भर करता है। मोदी महाराष्ट्र भाजपा के लिए मसीहा बन गए हैं। उनका अभियान, महाराष्ट्र को नंबर एक बनाने का उनका वादा और शिवसेना को छोडकर सभी पार्टियों की उनकी आलोचना चर्चा का मुख्य मुद्दा है।
भाजपा-शिवसेना गठबंधन के टूटने से सभी पार्टियां मोदी और भाजपा के ऊपर बढत बनाने की कोशिश कर रहे हैं। आज परिस्थितियां ऎसी हैं कि शिवसेना, मनसे, राकांपा और कांग्रेस एक-दूसरे की आलोचना कम कर रहे हैं, लेकिन मोदी और अमित शाह पर उनका हमला तेज रहता है।
इधर, महाराष्ट्र में स्टार नेता खुले तौर पर पूछने लगे हैं कि मोदी भारत के प्रधानमंत्री हैं या गुजरात के। इस शोर-शराबे के बीच राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) भाजपा के समर्थन में आगे आई है, और उसे लगता है कि महाराष्ट्र में सरकार बनाने का यह उचित समय है।
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