उन्होंने बताया कि सर्जरी के दौरान रक्त चढाने की जरूरत नहीं प़डी और न ही
मरीज को आईसीयू में रखना पडा। वह पहले दिन से ही बिना किसी कष्ट के वॉकर के
सहारे चलने लगीं। डॉ अश्विनी ने कहा, अभी हाल तक बुजुर्ग मरीज में हिप
फ्रैक्चर को मरीज के लिए घातक माना जाता था। इसे ठीक करने के लिए अगर
आपरेशन का विकल्प अपनाया जाता था तो यह आपरेशन काफी बडा हो जाता था। इसमें
रक्त की काफी हानि होती थी। कई बार मरीज की मौत हो जाती थी। एक और समस्या
यह थी कि अगर हम स्क्रू एवं प्लेट का इस्तेमाल करते थे तो मरीज को गंभीर
ओस्टियोपोरोसिस होने के कारण ये स्क्रू एवं प्लेट ढीले हो जाते थे और कुछ
माह बाद ही मरीज को दोबारा सर्जरी करनी पडती थी।
उन्होंने कहा, एक दूसरा विकल्प यह था कि हम मरीज का आपरेशन नहीं करें।
लेकिन ऎसी स्थिति में अगर कई बीमारियों से ग्रस्त बुजुर्ग मरीज बिस्तर पर
ही लेटे रहने के लिए विवश हो तो उसे बिस्तर पर पडे-पडे फेफ़डे में संक्रमण,
मूत्र नली में संक्रमण हो जाता था और पहले की बीमारियां गंभीर हो जाती
हैं। इसलिए बडा सवाल यह होता है कि ऎसे मरीजों का आपरेशन किया जाए या नहीं।
दूसरा सवाल यह होता है कि आपरेशन किया जाए तो किस तरह का आपरेशन हो,
फिक्सेशन हो या कूल्हा बदला जाए।
तीसरा सवाल यह होता है कि किस तरह से शरीर
पर पडने वाले आपरेशन के प्रभाव को कम से कम किया जाए। इसलिए जोड बदलने की
6000 से अधिक सर्जरी कर चुकी हमारी टीम ने एमआईएस तकनीक से कूल्हा
प्रत्यारोपण करने का फैसला किया और कूल्हा प्रत्यारोपण सर्जरी को
सफलतापूर्वक सम्पन्न किया।
(आईएएनएस)
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