कांगड़ा(मोनिका)। जल क्योंकि हमारे अस्तित्व के लिए अत्यावश्यक है इसलिए इसका शुद्ध, साफ तथा स्वच्छ होना हमारी सेहत के लिए जरूरी है। जल ही जीवन है यह कहावत मनुष्य सहित सभी सजीव प्राणियों के जीवन में जल के महत्व एवं अनिवार्यता को दर्शाती है। रोगाणुओं, हानिकारक अशुद्धियों और अनावश्यक मात्रा में लवणों से युक्त दूषित जल अनेक बीमारियों को जन्म देता है। दूषित जल के सेवन से टाइफाईड, डायरिया, बुखार, हैजा, हैपेटाईटिस, पीलिया आदि बीमारियां होने का खतरा अत्यधिक बढ़ जाता है। [@ जात-पात को तोड 22 युवा विवाह बंधन में बंधे] [@ अपने राज्य / शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे]
उपायुक्त सीपी वर्मा ने सभी लोगों से जल स्त्रोतों को साफ-सुथरा रखने में सहयोग करने तथा अपने आस-पास के परिवेश में साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखने का आग्रह किया है। उन्होंने लोगों से अपने घरों में पानी की टंकियों की समय-समय पर सफाई करने और अस्वच्छ पेयजल एवं खाद्य् पदार्थों के सेवन से बचने का आग्रह भी किया है। दरअसल वायरल हैपेटाइटिस या जोन्डिस को साधारणतरू लोग पीलिया के नाम से जानते हैं। यह रोग बहुत ही सूक्ष्म विषाणु (वाइरस) से होता है। शुरू में जब रोग धीमी गति से व मामूली होता है तब इसके लक्षण दिखाई नहीं पड़ते हैं परन्तु जब यह उग्र रूप धारण कर लेता है तो रोगी की आंखे व नाखून पीले दिखाई देने लगते हैं, लोग इसे पीलिया कहते हैं। यह रोग ज्यादातर ऐसे स्थानों पर होता है जहां के लोग व्यक्तिगत व वातावरणीय सफाई पर कम ध्यान देते हैं। भीड़-भाड़ वाले इलाकों में भी यह ज्यादा होता है।
वायरल हैपटाइटिस बी किसी भी मौसम में हो सकता है। वायरल हैपटाइटिस ए तथा नान ए व नान बी एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति के नजदीकी सम्पर्क से होता है। ये वायरस रोगी के मल में होते हैं तथा पीलिया रोग से पीडि़त व्यक्ति के मल से, दूषित जल, दूध अथवा भोजन द्वारा इसका प्रसार होता है। ऐसा हो सकता है कि कुछ रोगियों की आंखए नाखून या शरीर आदि पीले नहीं दिख रहे हों परन्तु यदि वे इस रोग से ग्रस्त हो तो अन्य रोगियों की तरह ही रोग को फैला सकते हैं। वायरल हैपटाइटिस बी खून व खून से निर्मित पदार्थों के आदान-प्रदान एवं यौन क्रिया द्वारा फैलता है। यहां खून देने वाला रोगी व्यक्ति रोग वाहक बन जाता है।
बिना उबाली सूई और सिरेंज से इन्जेक्शन लगाने पर भी यह रोग फैल सकता है। पीलिया रोग के मुख्य लक्षण रोगी को बुखार रहना, भूख न लगना, चिकनाई वाले भोजन से अरूचि, जी मिचलाना और कभी कभी उल्टियां होना, सिर में दर्द होना, सिर के दाहिने भाग में दर्द रहना, आंख व नाखून का रंग पीला होना, पेशाब पीला आना तथा अत्यधिक कमजोरी और थका थका सा लगना इत्यादि होते हैं।
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