बलवंत तक्षक
चंडीगढ़। जाट आंदोलनकारी नहीं माने। धरने जारी
रहेंगे। जरूरत पड़ी तो धरने पर बैठने वाले लोगों की तादाद बढ़ाई जाएगी। जाटों
की मांगों पर जब तक हरियाणा सरकार नहीं झुकती, वे आंदोलन से पीछे नहीं
हटेंगे। मुख्यमंत्री मनोहर लाल का आंदोलनकारी जाटों के बारे में कहना है कि
लोकतांत्रिक समाज में शांतिपूर्ण तरीके से अपनी मांगे रखने का सभी को
अधिकार है, लेकिन वे अच्छे से जानते हैं कि मामला लंबा खिंचा तो यह उनके
लिए ठीक नहीं रहेगा। पानीपत में सरकार के प्रतिनिधि बातचीत के लिए पहुंचे तो जाट नेता यशपाल मलिक ने उन्हें अपनी मांग बता दी जिसे सुनकर सरकारी प्रतिनिधि सुन कर लौट आए। [@ जानिए कहां रहते थे अंतिम हिंदू सम्राट विक्रमादित्या, क्या है नाम..]
जाटों ने अपनी मांगें मनवाने के लिए हरियाणा में ऐसे समय का
चयन किया है, जब उत्तरप्रदेश में भाजपा की सरकार बनाने के लिए प्रधानमंत्री
नरेंद्र मोदी और पार्टी अध्यक्ष अमित शाह दिन-रात एक किए हुए हैं। पहले
चरण का मतदान पश्चिमी उत्तरप्रदेश में आज संपन्न हो चुका है। पश्चिमी
उत्तरप्रदेश हरियाणा की सीमा से लगता जाट बहुल क्षेत्र है। उत्तरप्रदेश
विधानसभा चुनावों को देखते हुए ही हरियाणा में जाटों ने आंदोलन की तारीखें
तय कीं, ताकि मनोहर सरकार पर दबाव बनाया जा सके। इसके लिए जाट आंदोलनकारी
29 जनवरी से हरियाणा के 19 जिलों में धरने पर बैइ गए।
आंदोलन के मुखिया यशपाल मलिक जानते थे कि केंद्र में मोदी और
हरियाणा में खट्टर पर दबाव बनाने का इससे बेहतर मौका नहीं हो सकता। उन्हें
लगता था कि चुनावों के दौरान जाट नाराजगी का इजहार करेंगे तो केंद्र व
राज्य सरकार की तरफ से उनकी मांगों पर गौर किया जा सकता है। कुछ हद तक यह
रणनीति कारगर भी रही। मतदान की तारीख 11 फरवरी के मद्देनजर मनोहर सरकार की
तरफ से मान-मनोव्वल की कोशिशें जारी रहीं। न राज्य सरकार की तरफ से कोई
सख्ती की गई और न जाटों ने हिंसा का रास्ता अख्तियार किया।
आंदोलन ने भाजपा के शीर्ष नेतृत्व को परेशान जरूर कर
दिया। पार्टी के अध्यक्ष अमित शाह को केंद्रीय इस्पात मंत्री चौधरी
बीरेंद्र सिंह के दिल्ली स्थित आवास पर पहुंच कर हालात का जायजा लेने को
मजबूर होना पड़ा। उन्होंने चुनाव प्रचार के दौरान पश्चिमी उत्तरप्रदेश के
जाटों से सवाल भी किया कि अगर भाजपा को नहीं तो किसे वोट दोगे? जाहिर है,
भाजपा के नेता जानते हैं कि हरियाणा के जाटों की नाराजगी का खामियाजा
पश्चिमी उत्तरप्रदेश में पार्टी को भुगतना पड़ सकता है। लगता यही है कि इस
बार पश्चिमी उत्तरप्रदेश के जाट मतदाताओं ने भाजपा का उस तरह से साथ नहीं
दिया है, जिस तरह से लोकसभा चुनावों में दिया था।
चूंकि, पश्चिमी उत्तरप्रदेश में जाटों ने जो करना था, कर
दिया है। ऐसे में देखना होगा कि जाट आंदोलनकारियों के प्रति अब मनोहर सरकार
का रुख क्या रहता है? मुख्यमंत्री की ओर से मुख्य सचिव डीएस ढेसी की
अगुवाई में गठित पांच सदस्यीय समिति ने पानीपत में आंदोलनकारी जाट
प्रतिनिधियों से बातचीत कर ली है, लेकिन इसके कोई सकारात्मक परिणाम नहीं
निकले हैं।
जाटों की प्रमुख मांगों में आरक्षण देने, आंदोलन के दौरान
मारे गए लोगों के परिजनों को सरकारी नौकरी देने, मरने वालों के आश्रितों को
मुआवजा देने, मुकदमे वापस लेने और गिरफ्तार युवाओं को बिना शर्त रिहा करने
आदि मांगे हैं। दोनों पक्षों के बीच इन मांगों पर बातचीत हो चुकी है और
मुख्य सचिव की अध्यक्षता वाली अफसरों की समिति मुख्यमंत्री को इसकी रिपोर्ट
देने के बाद आगे की स्थिति साफ करेगी। माना जा रहा है कि आंदोलनकारी जाटों
और अफसरों की समिति के बीच बातचीत के लिए जल्दी ही एक और तारीख तय हो सकती
है। इसके बाद मुख्यमंत्री के साथ भी उनकी बातचीत संभव है।
पिछले आंदोलन के दौरान हरियाणा में 31 लोग मारे गए थे और
करोड़ों रुपए की संपत्ति का नुकसान झेलना पड़ा था। राज्य के आपसी भाईचारे पर
भी इससे आंच आई थी। आंदोलन को ले कर इस बार मनोहर सरकार पहले से ही सचेत है
और सुरक्षा के पुख्ता बंदोबस्त भी कर लिए गए हैं, लेकिन बेहतर यही होगा कि
जितनी जल्दी हो, बातचीत के जरिये जाटों को आरक्षण के मामले का हल ढूंढ़
लिया जाए।
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