जयपुर। प्रदेशभर में महाशिवरात्रि का पर्व शुक्रवार को मनाया जाएगा। पौराणिक मान्यता के अनुसार जो व्यक्ति वर्ष भर कोई व्रत उपवास नहीं रखता है और वह मात्र महाशिवरात्रि का व्रत रखता है तो उसे पूरे वर्ष के व्रतों का पुण्य प्राप्त हो जाता है। इस बार सर्वार्थ सिद्धि योग तथा 25 फरवरी को सिद्ध योग पड़ रहा है। प्रदोष व्रत एवं महाशिवरात्रि पर द्बादश पूजन का विधान है। महानिशीथ काल का पूजन सर्वोत्तम माना जाता है। यहीं नहीं पौराणिक मान्यता भी है कि ज्योतिर्लिंग का प्राकट्य भी अद्र्धरात्रि यानी महाशिवरात्रि को माना गया है। महाशिवरात्रि का पर्व इस बार कई विशेष संयोग लेकर आ रहा है, जो सभी के लिए शुभ फल देने वाले हैं। [# जेल जाने से बचाती हैं यह माता! चढ़ाते हैं हथकड़ी] [# अपने राज्य / शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे]
महाशिवरात्रि पर्व पर इस बार सर्वार्थ सिद्धि योग भी बन है, जो सभी के लिए शुभ फलदायी रहेगा। महाशिवरात्रि पर जलाभिषेक से भगवान शिव की पूजा का पूर्ण लाभ मिलता है। शास्त्रीय मान्यता के अनुसार चार पहर की पूजा मनुष्य को परमतत्व प्रदान करती है। महाशिवरात्रि की महारात्रि को अहोरात्र भी कहा गया है। जो भक्तजन चार पहर की पूजा कर भगवान शिव की आराधना करते हैं, उनके सभी मनोरथ पूर्ण होते हैं। वास्तव में जलाभिषेक के साथ ही पूजा का क्रम प्रारंभ हो जाता है। मान्यता है कि महाशिवरात्रि के दिन भगवान आशुतोष का जलाभिषेक कर दिया जाए तो निश्चय ही द्बादश ज्योतिर्लिंगों की पूजा और दर्शन का लाभ मिल जाता है। श्रावणी में शिव चौदस तथा फाल्गुन में शिवरात्रि के दिन गंगा जल चढ़ाने का महत्व विभिन्न धर्मशास्त्रों में दर्शाया गया है।
शिव पुराण के अनुसार महाशिवरात्रि ही भगवान आशुतोष का असली पर्व है। इस दिन शिव और सती एकाकार हुए थे। शिवरात्रि ही एक मात्र ऐसा दिन है जिस दिन शिव पर चढ़ाया गया जल सती को भी प्राप्त होता है। हिन्दू शैव ग्रंथों के मुताबिक शिव लीला ही सृष्टि, रक्षा और विनाश करने वाली है। वह अनादि, अनन्त है यानी उनका न जन्म होता है न अंत। वह साकार भी है और निराकार भी। इसलिए भगवान शिव कल्याणकारी हैं।
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