अमरीष मनीष शुक्ला । इलाहाबाद : गरीबी और
बेरोजगारी यह दो शब्द नहीं कहानी है जाने कितने अपराध के प्रादुर्भाव के, मानव
तस्करी के जाल में पहुंचने वालों के । इलाहाबाद के पांच किशोर उम्र के बच्चों को
भी मानव तस्करी के चंगुल में इसी गरीबी और बेरोजगारी ने ढकेल दिया था । जिसमें चार
तो बचकर निकल भागे लेकिन एक इस अंधेरे में खामोश होता गया । दिल्ली-राजकोट और पूणे
की गलियों में बार बार वह बिकता रहा । जितनी बार वह बंदिश तोड़ कर आजाद होना चाहता
हर बार उसे नये ग्राहकों को बेंच दिया जाता। लेकिन एक साल बाद बीमारी की अवस्था
में वह भागने में सफल रहा ।
इलाहाबाद में जब वह अपने घर पहुंचा तो बदहवासी
और डर ने अवसाद के रूप में उसे जकड़ रखा था । सामाजिक संस्था की देखरेख में बच्चे
को इलाज के लिए अस्पताल में भर्ती कराया गया है । अस्पताल में मानव तस्करी का जो
घिनौना सच उसने बताया उसे सुनकर परिजनों की रूह कांप उठी ।
नोटबंदी की राय देने वाले की पूरी राय नहीं मानी...
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