मंद्या। तमिलनाडु की पूर्व मुख्यमंत्री जयललिता की मौत के दस दिन बाद उनका दाह संस्कार किया गया। जयललिता के कुनबे के लोगों और रिश्तेदारों का मानना है कि जयललिता को दफनाया गया, ना कि उनका दाह संस्कार किया गया। रिश्तेदारों का मानना है कि दाह संस्कार ना करने से उनको मोक्ष प्राप्त नहीं हुआ। मोक्ष की प्राप्ति के लिए मंगलवार को हिंदू रीति रिवाज से श्रीरंगपटना में कावेरी नदी के तट पर दाह संस्कार किया गया। दाह संस्कार की रस्में मुख्य पुजारी रंगनाथ लंगर ने पूरी करवाई।
जयललिता के सौतेले भाई वरदराजू मुख्य तौर पर इन रस्मों में शामिल रहे। साथ ही जयललिता के मैसूर और मेलूकोटे वाले भतीजे भी इस दाह संस्कार की रस्मों में शामिल हुए। हांलांकि जयललिता का पार्थिव शरीर अभी भी वहीं हैं जहां उसे दफनाया गया था। दाह संस्कार में जया के शव की जगह एक गुडिया को उनकी प्रतिकृति मानते हुए रखा गया।
रिश्तेदारों का मानना है कि इस संस्कार से जयललिता को मोक्ष की प्राप्ति होगी। संस्कार से जुड़े कुछ और कर्म अभी शेष हैं, जो अगले पांच दिन तक पूरे किए जाएंगे। जयललिता के सौतेले भाई वरदराजू का कहना है कि पार्टी को जयललिता की मान्यताओं का सम्मान करना चाहिए था। वरदराजू ने सवाल उठाते हुए कहा कि क्यों पार्टी ने उन्हें दफनाने का फैसला किया।
क्या मेरी बहन हिंदू त्योहारों और मान्यताओं को नहीं मानती थी। साथ ही उन्होनें कहा कि हमें क्यों जया के अंतिम संस्कार से दूर रखा गया। गौरतलब है कि जयललिता को जब दफनाया गया तो उनकी सबसे करीबी शशिकला नटराजन ने अंतिम संस्कार की रस्में निभाई थी।
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