अजमेर। तेल निकालने की नित नई मशीनें आने के बाद परम्परागत रूप से चली आ रही घाणी की संख्या में गिरावट जरूर आई, लेकिन तेल व तिल की खली की मांग बरकरार होने से घाणी का वजूद आज भी बना है। हालांकि घाणी को चलाने में बैल को रखने में आने वाली परेशानी को देखते हुए कई जगह नवाचार कर दिया गया है। बैल की जगह बाइक का प्रयोग शुरू किया है। यहां ब्यावर में बिजयनगर रोड पर एक ऐसी ही घाणी इन दिनों चल रही है। श्रीगंगानगर निवासी किशन साहू ने यहां यह घाणी लगाई है। इसकी लाट (बड़ा लकड़ी का डंडा) को पहले बैल से बांधा जाता था। उसी लाट को अब मोटरसाइकिल से बांध दिया है। इसकी सहायता से तिल की खली बनाने का काम किया जा रहा है। सर्दी में मवेशियों को खिलाने के लिए खली की मांग अधिक रहती है। साहू ने बताया कि बैलों को अन्य शहरों में लाने ले जाने में होने वाली परेशानी के कारण ही उसने यह कार्य बाइक से करने के बारे में सोचा। उसने जालौर स्थित एक गांव में इस तरह की घाणी देखी थी। इसके बाद यहां उसने यह प्रयोग किया। उसने बताया कि वह अपनी बाइक को इस प्रकार से सेट करता है, जिससे वह बैलों की तरह गोल घूमती है। रोजाना इसमें तीन लीटर पेट्रोल की खपत होती है। उसने बताया कि जिस प्रकार से ग्राहकी होती है। उसी के मुताबिक वह घाणी चलाने का कार्य करता है। ज्ञात हो की पूर्व में घाणी चलाने के लिए बैलों का ही इस्तेमाल किया जाता रहा है।
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