बारां । भारत सरकार द्वारा देश के मुद्रा बाजार में चल रहे पांच सौ एवं एक हजार रूपए के नोटों को अचानक बंद कर दिए जाने का निर्णय पूरी तरह से व्यापार विरोधी तथा मध्यम व गरीब तबके के लिए परेशान करने वाला कदम है। व्यापार महासंघ अध्यक्ष ललितमोहन खंडेलवाल, महासंघ संरक्षक देवकीनंदन बंसल, आबिद भाई बोहरा ने बताया कि प्रधानमंत्री द्वारा कालेधन पर रोकथाम, आतंकवादियों को मिलने वाली आर्थिक सहायता तथा नकली नोटों पर नकेल कसने के लिए भले ही हजार व पांच सौ के नोट बंद कर राष्ट्रहित में फेसला किया हो लेकिन यह निर्णय इसलिए जल्दबाजी में माना जा सकता है कि निर्णय को तत्काल अमलीजामा पहनाने से आमजन के सामने कारोबार करने की काफी परेशानी खडी हो गई। बाजारों में सौ व दस के नोटों का प्रचलन पहले से ही काफी कम है। चाय बुलियन बाजार हो या कृषि उपज मंडी का कारोबार। जहंा अधिकांश लेनदेन नकदी से किया जाता है, पूरा कारोबार प्रभावित हो गया। आमजन को खरीदारी के लिए भी सौ व पचास का नोट मिलना मुश्किल हो गया। जहां एक ओर दो दिन बाद देवउठनी एकादशी का देशव्यापी सावा होने के कारण बाजार में कारोबार परवान पर है। शादी विवाह वाले परिवार को सौ व पचास की मुद्रा नही होने के कारण बाजार में सामान मिलना भी मुश्किल हो गया। ऐसे में उनके लिए शादी विवाह भी सम्पन्न करना परेशानी का कारण बन गया। व्यापार महासंघ प्रधानमंत्री के निर्णय का तो स्वागत करता है लेकिन इस निर्णय को कुछ मियाद देकर लागू किया जाता तो अधिक बेहतर होता। अचानक लिए निर्णय से आम आदमी के सामने रोटी का भी संकट खड़ा हो गया। जिसके मामले में सरकार पूरी तरह बेखबर रही है।
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