कानपुर। विधानसभा चुनाव को लेकर बड़ी पार्टियों के प्रत्याशियों के
अलावा निर्दलीय प्रत्याशी भी जनता के दरबार में वादों की झड़ी लगाए हुए है। पर उत्तर
भारत का मैनचेस्टर कहा जाने वाला कानपुर के मतदाताओं को कभी भी निर्दलीय लुभा नहीं
पाये। जिससे निर्दलीय प्रत्याशियों में चुनावी जुझारूपन का आभाव देखने को मिल रहा है।
लोकसभा चुनाव में भले ही मैनचेस्टर के मतदाताओं ने निर्दलीय
प्रत्याशी पर भरोसा किया हो पर विधानसभा चुनाव में यहां के मतदाता निर्दलीय प्रत्याशियों
पर विश्वास नहीं कर सके। जिसके चलते 1977 से आज तक यहां से कोई भी निर्दलीय प्रत्याशी
विधानसभा पहुंचने में नाकाम रहा। ऐसा नहीं है कि निर्दलीय प्रत्याशियों ने मजबूती से
चुनाव नहीं लड़ा। लेकिन औद्योगिक नगरी का मतदाता ने शहर के औद्योगिक विकास लिए सदैव
उन्हीं पार्टियों पर विश्वास किया जो प्रदेश की सत्ता पर काबिज हुई। आजादी के बाद कांग्रेस
का यहां पर परचम लहराता रहा और 1977 में जेएनपी की लहर में शहर साथ हो लिया। इसके बाद
1980 के चुनाव में कांग्रेस की आंधी आई और सभी दल हवा हो गये। 1985 में भी यही स्थिति
बनी रही लेकिन 1989 का दौर मंडल कमीशन के नाम रहा और जनता दल छा गया।
हालांकि गोविन्द नगर में पहली बार कमल खिलाने में भाजपा कामयाब रही
और यहीं से देहात की कुछ सीटों को छोड़कर 1996 तक भाजपा जनता के दिलों में छा गई।
1993 से समाजवादी पार्टी ने झण्डा गाड़ना शुरू किया और 2012 में सबसे अधिक सीटें जीतने
में कामयाब रही। बीते तीन चुनावों से शहरी सीटों को छोड़ बसपा व सपा के आस-पास यहां
का मतदाता विश्वास जता रहा है। लेकिन हर बार मैनचेस्टर के दर्जनों निर्दलीय उम्मीदवार
के वादें राजनीतिक पार्टियों के घोषणा पत्र के सामने टिक नहीं पाए। अब देखना होगा कि
इस बार मैदान पर उतरे निर्दलीय उम्मीदवार जनता की पसंद बनते है या नहीं। राजनीति के
जानकार डॉ. अनूप सिंह का कहना है कि निर्दलीय प्रत्याशी क्षेत्रीय मुद्दों को उठाते
हैं पर यहां का मतदाता औद्योगिक शहर के उत्थान को देखता है। जिसके चलते निर्दलीय प्रत्याशियों
पर यहां की जनता भरोसा नहीं कर पा रही है।
टक्कर से भी
दूर
हर बार दर्जनों निर्दलीय उम्मीदवार क्षेत्रीय मुद्दों
को लेकर चुनाव मैदान में ताल ठोकते हैं। पर कभी भी लड़ाई में नहीं टिक पाते। किसी को
एक हजार तो किसी को पांच हजार वोट तक ही सीमित रह जाते है। जिससे मतदाता भी निर्दलीय
प्रत्याशियों पर कोई चुनावी चर्चा नहीं करते।
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